आज बरसात में कुछ खेल हो रहे थे
कही बिजली कड़क रही थी
तो कही पंक्षी चहक रहे थे।
ठंडी सी हवा, तेज बरसात हो रही थी।
कुछ जख्म गहरे, तो कुछ नए हो रहे थे।
कही काले पंक्षी तो कही सफेद उड़ रहे थे।
कोई खेल समझ रहा था इसको,,
तो किसी के घर उजड़ रहे थे।आज बरसात में ऐसे कुछ खेल हो रहे थेl
कुछ भींग रहे थे खुशी में तो कुछ आंसु छिपा रहे थे।
कुछ पंक्षी रो, तो कुछ गा रहे थे।
किसी का घर उजड़ रहा था, तो कुछ बर्बाद हो रहे थे।
भींग कर इस बारिश में अपने गम छिपा रहे थे।
कुछ गम भुला रहे थे, कुछ सुवाप्न सजा रहे थे।
काली सी घटाओ संग पंक्षी गुनगुना रहे थे।
आज बरसात में कुछ खेल हो रहे थे।
कुछ पंक्षी बहुत ऊपर तो कुछ नीचे उड़ रहे थे।
कुछ आकाश में अपना निशा तो, कुछ जमी पर ढूंढ रहे थे।
कुछ पत्ते साख से टूट कर गिर रहे, तो कुछ नए निकल रहे थे।
कुछ बिछड़ रहे थे अपनो से, तो किसी को नए लोग मिल रहे थे। कही कश्तियां डूब रही थी,
तो कही उम्मीदों के फूल खिल रहे थे।आज बरसात में कुछ ऐसे खेल हो रहे थे।
Written by Tulsi
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अनकहे लफ्ज़,,,,,,,
Poetryअनकहे लफ्ज़ जो एहसासों से भरें है। कुछ जुड़े, कुछ टूटे बिखरे पड़े हैं। कुछ अपने है, कुछ तुम्हारे वो अल्फाज़ जो आंशुओ में भरे हैं। ना किसी ने सुने न किसी ने कहे हैं। अनकहे से लफ्ज़,,,,,,,,,,,,