जब कभी भारत और ब्रिटेन की तुलना हो तो एक मज़ेदार बात कही जाती है, 'इन ब्रिटेन यू कैन किस इन पब्लिक बट कैन नॉट पिस इन पब्लिक, इन इंडिया यू कैन पिस इन पब्लिक बट कैन नॉट किस इन पब्लिक'. वैसे मात्र एस्थेटिक्स के स्तर पर देखा जाए तो चुम्बन का दृश्य काफ़ी मनोहर और आकषर्क होता है और सार्वजनिक स्थल पर किसी को मूत्र विसर्जित करते देखना प्रायः भद्दा ही लगता है. चुम्बन के ये मनोहर,आकर्षक और उत्तेजक दृश्य आपको ब्रिटेन में सार्वजनिक तौर पर कहीं भी देखने मिल सकते हैं. ट्रेन में, बस में, कैफ़े में, रेस्टोरेंट में, बाग़-बगीचे में या रास्ते चलते हुए सड़कों के किनारे, प्रेमी युगल अपने पारस्परिक आकर्षण का कामुक प्रदर्शन करने से परहेज़ नहीं करते. वैसे कहा जाता है कि पश्चिमी यूरोप के अन्य देशों की तुलना में ब्रिटिश कहीं अधिक संकोची और रूढ़िवादी हैं, और मेरा व्यक्तिगत अनुभव भी यही कहता है, मगर तुलना यदि भारत से हो तो यौन अभिव्यक्ति के मामले में ब्रिटिश काफी अधिक उदार हैं.
भारतीय उपमहाद्वीप में यौन उन्मुक्तता को पश्चिमी देशों की देन माना जाता है. आम धारणा यही है कि यौन उन्मुक्तता पश्चिम की पहचान है और प्रेम, प्रणय या यौन प्रसंगों में संकोच और लज्जा भारतीयता का परिचय है. कम से कम हिन्दुत्ववादी संगठनों के कर्णधार तो यही मानते और मनवाना चाहते हैं. सन 1968 में आई हिंदी फिल्म औलाद में मेहमूद और अरुणा ईरानी पर फिल्माया यह गीत भी कुछ ऐसा ही कहता है, "जोड़ी हमारी जमेगा कैसे जानी, हम लड़का अंग्रेज़ी तुम लड़की हिंदुस्तानी". इस गीत की दो पंक्तियाँ है, "अंग्रेजी मुल्क में कितना रोमांस है, बाहर का छोकरी कितना एडवांस है".
मगर यदि छह या सात दशक पीछे जाएं तो पाएंगे कि मामला कुछ अलग ही था और अंग्रेज़ी मुल्क का छोकरी इतना एडवांस भी नहीं होता था. 1951 में ब्रिटेन के दक्षिण-पूर्वी समुद्र तटीय शहर क्लैटोन-ऑन-सी में हुए एक 'पर्सनालिटी गर्ल ऑफ़ द वीक' प्रतियोगिता की विजेता से उसके जीवन की महत्वाकांक्षा पूछी गई तो उसने गर्व से मगर कुछ लजाते हुए उत्तर दिया, "मेरे जीवन की महत्वाकांक्षा पहले ही पूरी हो चुकी है, विवाह के रूप में". उसके यह कहते ही दर्शकों के बीच से तालियों का ऐसा शोर उभरा जैसे उसने यह कह कर पूरे राष्ट्र को गौरान्वित किया हो.
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Letter From London
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