औरतपन की सुरुवत

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दवाई लेते ही जब मैं निकली अचानक पीयूष का फ़ोन कॉल। फोन उठाते ही उसने कहा कि वो आज खरगपुर आ रहा है। फिर मैंने कहा मैं भी कोलकाता आया हु। और अभी वापस जा रहा हु। पीयूष ने फिर एक साथ जाने की प्लान बताया। मैं राज़ी हो गई पर कोलकाता आने की कारण छुपाई । उसने भी ज्यादा कुछ पूछताछ नही किया। फिर हम दोनों हावड़ा स्टेशन मिले। स्टेशन में जैसे ही हमारा मुलाकात हुई, उसने अजीब तरीके से मुझे देखा। जायज़ थी एसे देखना। किउंकि मेरा सरीर पे काफी परिवर्तन हो गई थी। मेरा भी धड़कन तेज़ हो गई ये सोचके न जाने वो कुछ सवाल न कर बैठे। अपने आप को ठान के मैं पीयूष को पूछा चलो कुछ नास्ता करते है। फिर दोनों फ़ूड प्लाजा चले गए और चिकन बिरियानी खाये। पीयूष सिर्फ मुझे घूर रहा था पर कोई बाते नही कर रहा था। आखिर में उसने कहा बहुत गोरा लग रहे हो तुम। यह सुनके मेरे दिल मे जैसे ढोल बजने लगी। क्या होगा अगला सवाल? मैंने हसके बात टाल दिया। फिर नास्ता खत्म करके दोनो प्लेटफार्म पर चल पड़े। पीयूष मुझे तब भी घूर रहा था, शायद अब मेरी मचलता हुआ कमर पर नजर थी। मैं शरम से लाल हो रहा था। पर यह भी सोच रहा था अगर मैं हकीकत मे पीयुष की बीवी या गर्लफ्रैंड होती तो पीयूष तो आज मेरा कमर कसके पकड़के चलता फिरता। खैर कुछ ही देर में ट्रेन आगई और हम चरने लगे। पीयूष ने भीड़ ट्रेन में मुझे चरने के लिए ऐसे मदद किया जैसे कोई किसी गर्ल फ्रेंड को करते है। मैं और पीयूष दरवाजे के थोड़ा अंदर एक दूसरे के आमने सामने खड़े हो गए, किऊके अंदर भीड़ इतनी थी जाना मुश्किल था। पीयूष की सामने मुझे काफी औरतपन की एहसास हो रही थीं। हम दोनो बातें कर रहे थे। पीयूष बीच बीच मे मुझे एसे देख रहा था जैसे कोई मर्द खूसूरत लड़कियो की जवानी देखता है। मुझे शरम आ रही थी पर मजा भी। अंदर ब्रा पहनने के वजे से मुझे स्तन होने की अनुभूति भी हो रही थी। मेरा मन जैसे चा रहा था के "आओ पीयुष आओ चुमलो मुझे पिलो मेरी जिस्म का रस"। पर मैं अपने आप को सम्हल लिया। हर एक स्टेशन में नए पैसेंजर चरने से ट्रेन में भिड़ काफी बरती गई। भीड़ की दवाओं से मैं पीयुष की छाती से सिमट जा रहा था। वो मुझसे काफी लंबा था। इस लिए मेरा सर उसके करीब करीब मर्दानी छाती में टेक रहा था।  दूसरे लोगों से सेफ रखने के लिए पीयुष मुझे अपने हाथ से घेर लिया। पीयुष की हाथ मेरी कमर पर टच होते ही एक बिजली जैसी फीलिंग मेरी स्तन की निप्पल तक आ गईं और मेरी मुह से आउच शब्द निकल पड़ी। ऐसा कभी पहले नही हुआ था। ये सब हार्मोन की इफ़ेक्ट है। शायद मैं लड़की बन रही हूँ धीरे धीरे। पीयुष की नजर मेरी सरीर में चूब रही थी। वो मेरी सीने की बल्ज को तार रहा था। जैसे कोई लड़का लड़कियों की बूब्स देखता है। मुझे शरम भी आ रही थी और एक्साइटमेन्ट हो रही थी। मनु को दूध पिला पिला के मेरी निप्पल भी बड़ी हो गई थी। पेंसिल की टिप की तरह वो दोनों मेरी शर्ट के ऊपर से भी मालूम पर रह था। उस वक्त ऐसा मन मे आ रहा था कि बटन उतरके पीयुष को दिखा दु अंदर की खूबसूरती।
खरगपुर आते आते धीरे धीरे ट्रेन खाली होती गई। खरगपुर से तकरीबन 4-5 स्टेशन पहले हमे सीट मिली। ट्रेन तब मोटामोटी खाली ही हो गई थी। दोनो अगल बगल खिड़की के पास वाली सीट पर बैठ गए थे। एक दो स्टेशन के बाद बोगी के उस तरफ हम दोनों के सिवाय कोई और नही था। पीयुष ने इस मौके के फायदा लेकर मुझे पूछ ही बैठा। उसने कहा कोलकाता किस लिए आया था। मैंने कहा कुछ  काम था। पर उस को तसल्ली नही हुई। फिर मेरे तरफ मुरके दोबारा पूछा। ट्रेन के खिड़की से काफी तेज ठंडी हवा आ रही थी। और शाम ढल के अंधेरा भी हो रहा था। ठंडी हवा से मेरी निप्पल दानेदार बनके शर्ट के उपर से भी उभर रही थी। पीयुष कि नजर मेरी निप्पल पे था। मुझे बहुत शर्म लग रहा था। मैं शर्ट को खींच खिंच के छुपाने कोशिश कर रहा था। और उसके बाद जैसे ही पीयुष ने पूछा, ये क्या दिख रही है तुम्हारे सीने में, तो मेरी धड़कने ने छाती में हतोरा मार दी । मैं डरके मारे रो पड़ा। पीयुष ने मुझे जकर लिया आपने बाह में और कहा खुलके सब बताओ बिना झिझक के। फिर खरगपुर आने तक मैंने सब कुछ बता दिया। पीयुष सुनके कुछ देर चुप रहा। उसके बाद मुझे पूछा इतनी बड़ी फैसला अकेला क्यों लिया एक बार शलह मशवरा कर लिया होता। और ये भी पूछा के बाकी की जिंदगी मैं कैसे जीना चाहता हूँ। मैंने कहा कि मैं मनु की माँ बन कर जीना चाहता हूँ। फिर पीयुष ने वादा किया के जब मैं इतनी बड़ी जिम्मा लिया तो वो भी मेरा जिंदगी का जिम्मा ले गा।
इसके बाद हम दोनों ट्रेन से उतरके रिक्सा पकड़ के घर आ गए।

एक लड़का से कैसे एक कर्सड्रेसिंग बीवी बनीजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें