कोई ला दो मुझे वो बचपन की रात।
घर का आंगन खुला आकाश,
छोटी खटिया लंबी रात,,
मां का पल्लू भींगा हाथ,
नर्म बिछौना गर्म एहसास..
कोई ला दो मुझे वो बचपन की रात।झीनी चादर और चांद का दीदार,
तारों जड़े आसमां का अपना अंदाज़।
चंदा की कहानी सितारों का जाप,
सर को सहलाते वो पापा का हाथ।
कोई ला दो मुझे वो बचपन की रात।निहारती आंखे वो अनंत आकाश,
खुद में समा ले वो खुले देखे ख्वाब,
टूटे तारों से मांगे मुराद ..
हम भी बन जाए कोई बड़े साहब,
कोई ला दो मुझे वो बचपन की रात।
घर का आंगन वो खुला आकाश..मां का आंचल पापा का साथ,
कोई ला दो मुझे वो बचपन की रातलेखिका तुलसी
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अनकहे लफ्ज़,,,,,,,
Puisiअनकहे लफ्ज़ जो एहसासों से भरें है। कुछ जुड़े, कुछ टूटे बिखरे पड़े हैं। कुछ अपने है, कुछ तुम्हारे वो अल्फाज़ जो आंशुओ में भरे हैं। ना किसी ने सुने न किसी ने कहे हैं। अनकहे से लफ्ज़,,,,,,,,,,,,