१०. रहस्य

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फातिमा पागल बाबा के पीछे पीछे वीर और गीता के साथ साथ चलते हुए एक पहाड़ की चोटी पर जा पहुँची | हवा तेज लगाने लगी और उसकी बालों की लटों को मानो सहलाने लगी | वह चलते चलते रुक गयी और अपने दोनों हाथ फैलाकर आँखों को मूंदकर मानो इस स्वतंत्रता की अनुभूति को धारण कर रही हो | फिर उसने गाँव की और देखा जो कि पहाड़ की चोटी से एक बड़े मैदान सा दिख रहा है और लोग मानो चीटियों से दिख रहे हैं और वहाँ पर क्या हो रहा है वो कुछ पता तक नहीं चल रहा है | वीर और गीता भी फातिमा को रुका देखकर उसके पास ही आकर खड़े हो गए और मानो उसके ध्यान टूटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं |

पागल बाबा उन लोगों को मुस्कुराते हुए देख रहे हैं | जब फातिमा का मन दृश्यों को निहार कर भर गया तो उसने पागल को अपनी और देखते हुए पाया और वह मुस्कुरा कर बोली "गुरुदेव ! आप क्यों मुस्कुरा रहे हैं?"

पागल बाबा ने अपने सभी शिष्यों की और देखकर कहा "अगर सामने जो दिख रहा है उसे तुम सांसारिकता कहोगे तो यह शांत वीरान पहाड़ की चोटी वैराग्य कही जा सकती है | एक वैरागी ऊंचाई से संसार को देखता है और उसे सारी सांसारिक चीजें तुच्छ सी प्रतीत होती हैं और वैराग्य अत्यंत आनंदमय लगता है | संसार में रहते हुए भी एक वैरागी ध्यान के अभ्यास से यही अनुभूति प्राप्त कर सकता है और हमेशा आनंदपूर्वक रह सकता है |"

फातिमा ने मुस्कुराते हुए सोचा कि यह हमारे गुरुदेव की पहली शिक्षा है |

पागल बाबा ने मुस्कुराते हुए फातिमा की और देखकर कहा "हाँ, इसे तुम लोग मेरी पहली शिक्षा समझ सकते हो | यह सदा आनंद में रहने और संसार की घटनाओं से अप्रभावित रहने का पाठ है |" 

फातिमा मानो पागल बाबा द्वारा उसके मन की बात जान जाने से आश्चर्यचकित सी रह गयी और उसकी उत्सुकता की मानो कोई सीमा ही न रही | उसकी उत्सुकता उसके चेहरे पर साफ़ झलक रही है |

पागल बाबा ने मानो समझते हुए कहा "हमारी आत्मा ही प्राण है और इस संसार की सभी आत्माएं परमात्मा का एक अंश हैं और इसीलिये वे सभी परमात्मा के द्वारा एक दूसरे से जुडी हुई हैं और यदि तुमने अपनी आत्मा से सम्बन्ध स्थापित कर लिया तो इस संसार की हर आत्मा से तुम्हारा सम्बन्ध स्थापित हो जाएगा और फिर तुम दूसरों के मन की बातें भी जान सकते हो और उन्हें नियंत्रित भी कर सकते हो | और अपनी आत्मा के साथ एक होने की प्रक्रिया ही कहलाती है योग और ध्यान की प्रक्रिया |" 

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