५. आर्यरक्षक - निर्भय वीर योद्धा

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प्रकृति के आँचल में पहाड़ों से घिरे हुए सुरक्षित स्थान पर स्थित है बीरकुनिया गाँव | सुंदरता की दृष्टि से एवं जीवन की मूलभूत सुविधाओं की दृष्टि से भी गाँव संपूर्ण है | गाँव के लोग छोटे छोटे हिस्सों में ज़मीन पर खेती करते हैं और पानी की व्यवस्था बरसाती नदियों या कुँओं से होती है |

बीरकुनिया गाँव के लोग अत्यंत ही वीर योद्धा हैं और इसी कारण से अन्य आर्य गाँवों से लोग उचित मार्गदर्शन व शिक्षण के लिए अपने बच्चों को यहीं भेजते हैं | वीर होना वर्तमान समय की आवश्यकता है क्योंकि दस्युओं का ख़तरा हमेशा ही बना रहता है | दस्यु का साधारण सा अर्थ है 'बुरा मनुष्य' या 'लुटेरे' | शहरों पर दस्युओं का अधिपत्य है, वे तकनीकी पर निर्भर हैं और जिस भी नये क्षेत्र में जाते हैं वहाँ पर लूटमार और अमानवीय कृत्यों की बाढ़ सी आ जाती है | गाँव के चारों ओर स्थित पहाड़ियों से बीरकुनिया के योद्धा रात दिन निगरानी रखते हैं | गाँव की जनसंख्या तीन सौ है, जिसमें से लगभग सौ युवा पुरुष और युवतियाँ सुरक्षा के कार्य में लगे रहते हैं |

आर्यों का मानना है कि तकनीकी के अंधाधुंध प्रयोग के कारण ही महायुद्ध हुआ था और मानवता के बड़े पैमाने पर विनाश का कारण बना था और यही तकनीकी मनुष्य को आलसी और कमजोर बनाती है और प्रदूषण तथा रोगों का मुख्य कारण भी है, अतः आर्य लोग प्राकृतिक जीवन जीने और अध्यात्मिक विकास को ही श्रेष्ठ समझते हैं | गाँवों के लोग तीर-धनुष, तलवार व भाले जैसे अस्त्र शस्त्रों का प्रयोग करते हैं |

बीरकुनिया गाँव एक प्रकार से सभी आर्यों के लिये शिक्षा, अस्त्र-शस्त्र और अध्यात्म का केन्द्र हैं और यहाँ पर कई अन्य ग्रामों के बच्चे प्रशिक्षण के लिये आते हैं | गाँव में शिक्षण हेतु एक विद्यालय है जहाँ पर आचार्य लोग बच्चों को भाषा, विज्ञान, अध्यात्म और अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देते हैं | गाँव की समस्याओं पर चर्चा हेतु एक सामुदायिक भवन भी है | बीरकुनिया गाँव के मुखिया विष्णुगुप्त अत्यंत ही विद्वान और कूटनीति के जानकार हैं और वे कृषि तथा शस्त्रास्त्र में भी निपुण हैं और इसीलिए कृषि व सुरक्षा प्रबंध उन्ही की निगरानी में होते हैं |

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