६. आर्यत्व की इच्छा

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गाँव बीजपुर आर्य ग्राम बीरकुनिया से लगभग पच्चीस तीस कोस की दूरी पर पूर्व की दिशा में रिहन्ध नदी के पास स्थित है | बीजपुर गाँव भी विन्ध्य क्षेत्र में ही आता है किंतु फिर भी बीजपुर के लोगों का आर्यों के साथ व्यापारिक संबंध मात्र है |

गाँव के मुखिया आकिब ख़ान अपने घर की बैठक में गाँव के ही एक वरिष्ठ व्यक्ति और अध्यापक रामचंद्र के साथ बैठे हुए हैं |

गहन चिंता में मग्न रामचंद्र ने अंततः अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा "मुझे आज तक यह बात समझ में नहीं आयी कि क्यूँ हम आर्यों में पूरी तरह से शामिल नहीं हैं, क्यूँ हम अपने बच्चों को बीरकुनिया पढ़ने नहीं भेजते? क्या यह इसलिए कि हमारा गाँव मुस्लिम बहुल है?"

आकिब ख़ान ने रामचंद्र की ओर देखा और फिर कुछ सोचते हुए कहा "नहीं, ये कारण नहीं है | वैसे माड़ा और पंजरेह में भी तो मुस्लिम हैं, लेकिन आज वे सभी आर्य कहलाते हैं | और देखिए गोभा में तो मुस्लिम नहीं हैं, फिर भी वे अपने मतभेद के कारण आर्यों में शामिल नहीं हैं |"

रामचंद्र ने विनतीपूर्ण स्वर में कहा "कई दिनों से आप विचारों और मतभेदों की बात करके टाल जाते हैं | मैं जब दस साल पहले इस गाँव में आया था तब से मुझे मात्र इतना ही पता है | कृपा करके अब तो बता दीजिए | गाँव का एक बुजुर्ग और अध्यापक होने के नाते तो मुझे कुछ बातें पता होनी चाहिए |"

आकिब ख़ान ने कहा "जब हमारे पिता और अन्य लोग एक अच्छी जगह खोजते हुए यहाँ आए तो यह गाँव पूरी तरह वीरान था, यह पचास साल पहले की बात है और मैं उस समय आठ साल का था | गाँव पूरी तरह वीरान था और लोग गाँव छोड़कर पता नहीं कहाँ चले गये थे | जब हम यहाँ आए तो सूखा था चारों ओर और प्रदूषण के कारण नदी का पानी भी पीने लायक नहीं था |  लगभग दो सौ लोग बचे थे और वो भी चले ही जाते अगर हम लोग यहाँ पर नहीं आते और हालत सुधार के अपने प्रयास चालू न करते | हमने इस जगह को अपना घर बनाया और यहाँ पर गाँव बसाया | सबसे शुरू में आने वाले हम लोग सौ लोग थे, बाद में नये लोग आए और संख्या छह सौ तक पहुँच गयी | हमने गंदे पानी को साफ करने का तरीका निकाला और कुछ खेती और कुछ शिकार करके बुरे वक्त को पार किया | हम आर्यों की भाँति दया और करुणा वाले लोग नहीं थे, हम शिकार करते थे और उसी समय पर हमारा सामना आर्यरक्षकों से हुआ और हममें कुछ ख़ास नहीं बनी |"

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