११. प्रतिज्ञा का तप

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प्रतिज्ञा खुद को रोक नहीं पाई और रोते हुए बोली "वासुदेव ! आप आर्यपुत्र के लिए कुछ मत कहिए, सारी गलती मात्र मेरी है क्योंकि मैं हूं जिसे पहली ही दृष्टि में आर्यपुत्र से प्रेम हो गया था और वह मैं ही हूं जो अपने प्रेम के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं | किंतु मैं क्या करूं अब मैंने प्रेम तो कर ही लिया है और उस पथ पर मैं आगे बढ़ भी गई हूं | अब क्या मैं वापस लौट सकती हूं, क्या मैं अपनी प्रेरणा को मार सकती हूं ? नहीं, ऐसा कभी नहीं होगा  |"

प्रतिज्ञा की मानो सारी शक्तियां उसके आंसुओं के साथ बही जा रही है हैं और वह जमीन पर अपने घुटनों पर बैठ गई और बोली "एक वर्ष पहले जब विश्व युद्ध प्रारंभ हुआ और हमारे भारत पर विनाश के बादल छाने लगे बुराइयां सर उठाने लगी और अच्छे लोग बचने के प्रयास में लग गए, मैं और अन्नपूर्णा किसी प्रकार बचकर बनारस से तपस्थली महादेव तक अत्यंत कठिन और दुष्कर यात्रा कर के पहुंचे | उन दुष्ट मुस्लिमों ने हमारे परिवार को मार डाला, घरों को जला डाला और मुझे अपना जीवन एक भार सा प्रतीत होने लगा था और जीने की कोई इच्छा ही शेष नहीं रही थी  | ऐसे समय में हमारे गुरु ने हमें ज्ञान के द्वारा जीवन का उद्देश्य समझाया और आर्यपुत्र को देखकर मुझे वीर बनने और बुरे लोगों से संघर्ष करने की प्रेरणा मिली | जिस जीवन को मैं भार समझने लगी थी, आर्यपुत्र के कारण वह मुझे अब प्रेमपूर्ण और रोचक लगने लगा | अब यदि आर्यपुत्र नहीं तो मेरा जीवन भी नहीं होगा क्योंकि मेरा जीवन तभी है जब इसका उद्देश्य आर्यपुत्र हैं |"

वासुदेव नामक यह युवक पता नहीं कहाँ से बचकर तपस्थली पर पहुँच गया था दो वर्ष पूर्व, जब प्रतिज्ञा और अन्नपूर्णा वहां आयीं थी उसकी कुछ दिन बाद ही | उससे कुछ भी पूछो वह बताता नहीं है और कहीं जाता भी नहीं है | वह पता नहीं क्या करता है, दिन भर इधर उधर घूमता रहता है तपस्थली के आस पास ही और प्रतिज्ञा को इस बात का आश्चर्य है कि वह अन्नपूर्णा की हर बात मानता है | प्रतिज्ञा और अन्नपूर्णा को प्रारम्भ में एक युवक का आस पास होना असहज लगता था किन्तु वह नहीं माना और अपनी सेवा भावना से अन्नपूर्णा का विश्वास जीत लिया | उसी से उनको आस पास के गाँवों का समाचार मिलता है, वही प्रतिज्ञा और अन्नपूर्णा के लिए भोजन की व्यस्था करता है | जब प्रतिज्ञा या अन्नपूर्णा उससे कहती हैं कि वह भी अपनी शारीरिक और मानसिक शक्तियों का विकास क्यों नहीं करता तो उसका एक ही बात कहना है कि प्रतिज्ञा या अन्नपूर्णा में से जो पहले एक योग्य तपस्वी बन जाएगा वह उसका शिष्य बन जाएगा |

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