३. उद्देश्यपूर्ण यात्रा का आरंभ

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०६ अगस्त २०४९, जबलपुर रेलवे स्टेशन

लगभग ६ बज चुके हैं| एक ब्रिगेडियर, एक मेजर और लगभग १०० सेना के जवान रेलवे स्टेशन के मुख्य द्वार पर घेराबंदी किये हुए छुपकर निशाना लगाए हुए हैं| सेना को ये आभास भी नहीं था कि स्टेशन पर आतंकी कब्जा हो गया है जब वे यहाँ पहुँचे थे और अचानक ही आतंकियों ने गोलियाँ चलाना शुरू कर दिया था, यह सेना का भाग्य ही था कि इस अचानक आरंभ हुई गोलीबारी में कुछ लोग घायल मात्र हुए| रात में ही फोन इत्यादि बंद हो जाने के कारण कोई पता भी नहीं लगा सका कि स्टेशन की स्थिति कैसी है| सुबह ५ बजे से ही गोलीबारी चालू है किंतु लगभग पिछले १५ मिनट से आतंकवादियों की तरफ से कोई हरकत नहीं हो रही है|

मेजर गुरुमुख सिंह ने ब्रिगेडियर की तरफ प्रश्नसूचक दृष्टि से देखा और सहमति पाकर दाँयी और बाँयी ओर से जवानों को धीरे धीरे आगे बढ़ने का ईशारा किया| सावधानी पूर्वक आगे बढ़ते हुये जब उन्होने प्लेटफार्म एक में प्रवेश किया तो उन्होने पाया कि लगभग १२-१५ आतंकी इधर उधर मरे पड़े हैं किंतु उनका ध्यान आकर्षित किया लोगों की एक भीड़ ने और वे लोग उस ओर बढ़े यह जानने के लिए कि क्या बात है|

लोगों ने चारो ओर से उन्हें घेर रखा है| कुछ लोग अपनों के वियोग के दुख में तो कुछ अपने प्राण बचने से खुश हैं| लोग हाथ बढ़ाकर आर्या और उसके भाई के सिर पर हाथ फिरा रहे हैं या कि एक दूसरे को धकेलकर मानो उन्हें देखना चाह रहे हों| ऐसा लग रहा है मानो भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी हो भगवान के दर्शनों के लिये|

स्टेशन पर उपस्थित कई यात्री और यहाँ तक कि उसके साथी भी आर्या और उसके भाई की हिम्मत और वीरता का बखान कर रहे हैं| कई लोग अपने संबंधियों की मृत्यु से शोकग्रस्त हैं किंतु इस बात से खुश भी हैं कि वे आतंकी एक छोटी बच्ची के हाथों कुत्ते की मौत मारे गये| लोगों की बातों को सुनकर गुरुमुख सिंह को यह बात समझते देर नहीं लगी कि २६ में से २४ आतंकी आर्या और उसके साथियों के द्वारा मार डाले गये हैं और वो भी बिना कोई नुकसान उठाये और उनका हृदय भी बच्चों की वीरता पर गर्व से भर गया|

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