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है प्रेम तुम्हारा ह्रदय में मेरे,

गुरू- गुरू, गम्भीर-गम्भीर।

सुगंध तुम्हारा जैसे चंदन,

मंद-मंद, मध्यम-मध्यम।

ओंठो पर यह झलक हँसी की,

चपल-चपल, चंचल-चंचल।

नयन तुम्हारे भरे हैं मद से,

मुंदे-मुंदे से, बंद-बंद।

वह रूप तुम्हारा बसा है मेरे,

चित- चित, चितवन-चितवन।

कर पान तुम्हारा प्रेम मधु मैं,

मत्त-मत्त, पागल-पागल।

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