है प्रेम तुम्हारा ह्रदय में मेरे,
गुरू- गुरू, गम्भीर-गम्भीर।
सुगंध तुम्हारा जैसे चंदन,
मंद-मंद, मध्यम-मध्यम।
ओंठो पर यह झलक हँसी की,
चपल-चपल, चंचल-चंचल।
नयन तुम्हारे भरे हैं मद से,
मुंदे-मुंदे से, बंद-बंद।
वह रूप तुम्हारा बसा है मेरे,
चित- चित, चितवन-चितवन।
कर पान तुम्हारा प्रेम मधु मैं,
मत्त-मत्त, पागल-पागल।
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कुछ कविताऐं, कुछ नज़्म (Kuch Kavitaayein,Kuch Nazm)
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