26. आसमान

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खुले आसमान में उड़ते पन्नो सी वो किताब लिए बैठी है...

एक हाथ से कलाम और दूसरे से मेरा हाथ थामे बैठी है...

कलम की सियाही से शब्दों को रूबरू करने बैठी है...

वो मेरी जान खुदा के सामने जब अपने अल्फ़ाज़ रख बैठी है...

खुले आसमान में उड़ते पन्नो सी वो किताब के लिए बथी है...

Ishaare Shabdon Keजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें