एक जीने कि उम्मीद बची थी,अब वह भी ख़त्म होने लगी है।
किससे कहे हाल-ऐ-दिल जब सब कुछ ख़त्म होने सी लगी है।
क्या क्या न सोचा था जिंदगी में,और क्या क्या कर पाए।
एक छोटी सी तो ख्वाहिश थी जिंदगी की और उसे ही न कर पाए।
अब इस दुनिया क्या बचा है मेरे लिए ,क्यों रहू अब यहां, कौन है मेरे लिए।
सोचता हूँ , जिंदगी युहीं कट जायेगी,पर शायद मुझे ये बहुत तड़पाए
जो सोचा था वह कर न पाया ,जो चाहा था वह मिल न पाया।
एक मौत ही तो बची है , पर डर लगता है मांगने से
क्योंकि आखिरी उम्मीद है वह,जब उसे नही पाया तो जिंदगी में क्या पाया।