पाठ-18

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विक्रम फिर बोला : लेकिन तुम मुझे समझ ही नही पाई ! तुम लाख कोशिश करो मुझसे दूर रहने की , लेकिन मैं तुम्हारा और गुड़िया का ख्याल रखूंगा !

अनु विक्रम के मुंह से गुड़िया का नाम सुनकर एकदम से खडी हो गई और विक्रम को दोनों बांहों से पकडते हुए चिल्लाते हुए बोली : तुम गुड़िया को कैसे जानते हो ? कौन हो तुम ? कहां से आये हो ?

एक साथ कई सवाल अनु ने विक्रम की तरफ देखते हुए कर दिए !

विक्रम: जानता हू तुम्हारे बारे में सब कुछ ! जिस दिन तुम्हारा नम्बर लेकर गया था कालर पर उसका नाम शांता बाई आ रहा था ! तो शांता बाई नाम देखकर मैने पता निकाला तो जो पता निकला मै जानता हू शांता बाई को ! तो वहां जा कर मिला और नम्बर के बारे में पूछा तो उन्होंने तुम्हारे बारे में बताया !

क्योंकि जिस दिन तुम्हारे मां पापा की डैथ हुई शांता बाई ने मुझे फोन किया था कि मुझसे कुछ काम है मुझे आना है लेकिन मै आ नही पाया मै कही फंसा था ! शांता बाई ने सब बताया फोन पर ! लेकिन मै ये नही जानता था कि तुम वही लडकी हो ! वो अब पता चला !

अनु सुन कर रोने लगी ! और बोली : तो तुम ये मुझपर तरस खा कर कर रहे हो !

विक्रम उसे दोनों बांहों से पकडता हुआ बोला : फिर गलत समझी मुझे ! मै हैरान हू तुम्हारे जैसी बहादुर लडकी ये सब सह कर मरने कैसे जा रही थी ? मै तुमको बहुत मजबूत देखना चाहता हूं और ऐसे नही कि ज़िन्दगी को बिल्कुल नीरस बना के ! तुम्हे भी हक है जिन्दगी जीने का !

अनु  विक्रम को एक टक देख रही थी उसकी बाते उसके बुझे दिल को सुकून तो दे रही थी बस वो मानना नही चाहती थी कुछ भी कि बहुत सालो बाद विक्रम की बाते उसे अच्छी लग रही थी !

विक्रम : अच्छा अब तुम आराम करो मै चलता हूं  बहुत भूख भी लगी है रास्ते में खा लूंगा !

विक्रम चलते हुए दरवाजे तक पहुंचा तो अनु ने पीछे से कहा: सब्जी बनी है बस रोटी बनानी है अगर तुम खाना चाहो तो मैं बना रही हूं !

विक्रम तो चाहता ही था अनु के साथ खाना तो खुशी से बोला : हा खाऊंगा नही बल्कि मै आज रोटी बना कर तुमको खिलाऊगा !
अनु कुछ बोल पाती इससे पहले ही विक्रम अपनी कमीज की बाहें उपर की और फ्रिज से आटा निकाल कर गैस जला कर रोटियां बनाने लग गया !

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