पाठ-23

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दो हट्टे कट्टे आदमी विक्रम का रास्ता रोक कर खडे हो गए !
विक्रम ने दोनों को एक एक मुक्के से ही ढेर कर दिया और गेट के अंदर जा पहुंचा !

सामने बीच में बहुत बडा हाल था साइड में सीढ़ियां उपर तक गई हुई थी सीढ़ियों से कुछ आदमी विक्रम को रोकने के लिए आगे आए ! एक एक करके विक्रम उनको ढेर करता करता उपर तक पहुंच गया !

तभी उसके सर पर पीछे से किसी आदमी ने गन लगा दी और बोला: ज्यादा होशियारी नही चुपचाप अपने हाथ पीछे करो !

विक्रम ने बिना पीछे देखे एकदम से आगे की ओर झुक कर अपने दोनों हाथ सर के उपर से पीछे करते हुए उस आदमी को आगे खीच कर अपने सामने ज़मीन पर पटक दिया ! ये इतनी फुर्ती से हुआ कि वो आदमी शिथिल होकर जमीन पर गिर पडा ! विक्रम ने दो तीन मुक्के उसके मुंह पर जड दिए !

विक्रम लोबी पार करता हुआ एक हाल कमरे में पहुंच गया !

कमरे में बीचों-बीच एक बडा सा सोफा था विक्रम जा कर उस सोफे पर बैठ गया ! अपनी गन सामने टेबल पर रख दी ! और तेज आवाज में बोला :  दिलावर सिह !!!!
सामने आ !!
तभी साथ वाले कमरे में से वही हट्टा कट्टा आदमी जो अनु के घर पर आया था अपने साथ पाच छः आदमियों को लेकर हाल में दाखिल हुआ ! और सामने दुसरे सोफे पर विक्रम के सामने बैठ गया ! उसके आदमी उसके पीछे खडे हो गए !

दिलावर सिंह : ओह ! कल तक बाबू जी कहने वाले आज मेरे नाम से चिंघाड़ रहे है ! उस लडकी में बहुत गरमी है जो तुझे काबू में कर लिया ! लगता है सारी गरमी एक ही बार में तुमको दे दी !

विक्रम सुर्ख आंखों से : दिलावर सिंह ! मुंह सम्भाल कर बोल ! तू जानता है कि मुझे रोकना तेरे बस की बात नही ! तेरे कुत्तो को रास्ते से हटा कर ही तेरे सामने बैठा हूं ! बाप की तरह समझा तुझे बचपन से ! लेकिन तूने ये जिंदगी दी मुझे ! बचपन में ही हाथ में गन पकडा दी ! फिर भी करता रहा तेरे हुक्म की तामील ! लेकिन ये तय था कि मेरी पर्सनल लाइफ को तुमसे कोई मतलब नही होगा ! अगर तू सच में बाप की तरह होता तो मेरी पर्सनल लाइफ में नही घुसता !

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