आज भी....

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" माँ " इस पूरी सृष्टि की निर्माताजिसने इस पूरे विश्व की रचना की हैतोह क्यों ना इस कविताओं की दुनिया की रचना भी माँ से ही करें

में आज भी यहां थी ,
कल भी और हमेशा रहूंगी ;
हस्ती खिलखिलाती दूर बैठी
तुझे देखती रहूगी,

तुझे दिखूंगी नहीं पर,
में तुझे देखती रहूंगी ;

आज भी जब तू  रोएगा तो तेरे
आँसू पोछने आऊँगी ,
जब तू हसेगा तो तेरी हसी में
खुद को खोया हुआ पाऊँगी.

जब तू गिरेगा रोते रोते
माँ पुकारेगा ,
तो आज फिर सब काम छोर ,
तेरे पास दोडीे चली आउंगी
और अपनी बाहों में उठा
तेरी भोली शिकायतें सुनूंगी

ठंडी हफ़ा के झोंक सा
तुझे छू भी जाउंगी
और अपने संग तेरे दुःख
उड़ा भी ले जाउंगी

में चाहे दिखू या न दिखू
हमेशा तेरे संग रहूंगी
तेरे करीब पर बहुत दूर
तुझसे  जुदा पर तेरे अंदर
ही कहि छुपी मिलूंगी,

जब तू खुद को अकेला समझना
तो दिल पर हाथ रख
उसकी बोली सुन लेना
आजभी उस धड़कन में
तेरे संग धड़कती मिलूंगी,

आज भी जब तू किसी कश्मकश में फस
टिमटिमाते तारो से अपनी उलझन
का हल मांगेगा,
तो आजभी उस रौशनी में खोया
मेरा चेहरा अपने सामने पाएगा

में दूर नहीं तेरे पास ही रहूंगी
आज भी थी कल भी और हमेशा रहूंगी
हस्ती खिलखिलाती
दूर बैठी तुझे देखती रहूंगी......,

🌼"Mother is always besides you

No matter how far she is, but her

presence is always with you"🌼

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