एक पिता....

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काली अँधेरी घटा में सूरज की उस मीठी धुप सा है वो
घनघोर बारिश में पेड़ की नरम छाओ सा है वो

ठेहरे समुन्दर सा शांत भी है
तो गिरी सा विशाल भी

काली रात सा भयानक भी है
तो सुबह फूलों पर पड़ी ओस सा कोमल भी

वो पिता है , बिना जताय सारी रात परवाह करने वाला भी वो है
तो हमारे सपनो को उमीदो के पर लगाने वाला भी वो है

खुद दर्द का घुट पी कर हमे सुकून का पन्हा देने वाला भी वो है
तो हमारे नन्हे कदमो को सही मंज़िल पर चलाने वाला भी वो है

अपनी भावनाओ को पल्खों की छाओ में छुपाने वाला भी वो है
तो तनहा मन रख चेहरे पर मुस्कान दिखने वाला भी वो है

पिता महज़ एक शब्द नहीं
अनेको भावनाओ का शब्दकोश है
स्वाभिमानता की मूरत है
अनगिनत तुजुर्बे भरी कहानियों की खुली किताब सा है
जताता नहीं पर
हमारे दर्द में बहे हर ाासुको महसूस करने वाला भी वो है
बताता नहीं पर
सबसे ज़्यादा जानने वाला भी वो है

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