क्यों आज फिर उसकी मुस्कराहट दिल को छू गयी
क्यों दिन भर दिन उसकी आदत सी होने लगीउसका पास आना तो आज भी अच्छा लगता है
पर इस कम्भख्त समाज को उसका धर्म दीखता हैक्यों आज फिर इन जज़्बातों पर समाज का ताला लग जाता है
और ये मासूम दिल उसका होकर भी उसका न बन पता हैहर रोज़ यु ही उसे देख अपना दिल हार जाती हु
पर एक बार फिर समाज के सामने खुद को कमज़ोर पाती हुशायद हमारी तक़दीर को यही मंज़ूर था
हमारी लकीरों में उसका नाम भले ही न हो
पर ये दिल आज भी उसका है ||🍁🍁________________________________🍁🍁
आप पढ़ रहे हैं
लफ़्ज़ों की साजिश
Poetryकुछ अंकही दस्तानो का खूबसूरत सफर।। ये दिलों की बातें है, दिल से पढ़ोगे तोह ही समझ आयगी! तो झांकिये पन्हो मे और बन जाइये हिस्सा इस खूबसूरत सफर का।