नलिनी के चेहरे पर गहरी चिंता छाई हुई थी, थोड़ी देर पहले ही सुबोध को नींद आई , कई दिनों के बाद सुबोध आज सो पाया था। वो कभी बेचैनी से ऊपर देखती जहाँ उसका पति सो रहा था और कभी उस दरवाजे को देख कर सिहर सी जाती, ना जाने कौन सा राज़ उसे खाए जा रहा था।
बाहर बारिश तो जैसे कहर ढा रही थी, तूफ़ान हर पल और ही उग्र होता जा रहा था। रात के आठ बज रहे थे, नलिनी की आँखों से आँसू जैसे बंद ही नहीं होना चाहते हों।
"तुझे आना ही होगा आज! ........" खालिद की आवाज़ उसके कानों को चीर रही थी।
खालिद, उस शहर के M.L.A. का दायां हाथ, उसके ऊपर हाथ डालने की हिम्मत किसी में नहीं थी। पिछले पुलिस सुपरिटेंडेंट सुरेन्द्रनाथ बागची ने उसके घर पर रेड डालने की कोशिश की थी लेकिन इससे पहले वो उस के घर में घुसते, उनका तबादला कर दिया गया और उस तबादले लेटर की प्रति सुरेन्द्रनाथ को खालिद से मिली। उसके बाद तो उसे रोकने वाला शहर में नहीं था।
पिछले एक महीने से खालिद ने उसकी जिंदगी नर्क बना कर रख दी थी, जहाँ देखो वहीं पहुँच जाता और नलिनी को सबके सामने घूरता, उसकी आँखे तो जैसे उसके कपड़ों को उसके शरीर से नोंचकर अलग करना चाहती हो। उसे इतनी शर्मिंदगी होती लेकिन इतना सब होने पर भी किसी में हिम्मत नहीं कि कोई कुछ बोल भी सके।
आखिर कितना बर्दाश्त करती वो? एक दिन वो बैंक से पैसे निकाल कर बाहर निकलने के लिए गई थी तो वहाँ भी वो नामुराद आ पहुँचा। उस छोटी सी बैंक की पुरानी इमारत का गलियारा बड़ा सँकरा था और वो उसी गलियारे पर गेट के बीचोंबीच खड़ा था। नलिनी इतने दिनों से सब चुपचाप बर्दाश्त कर रही थी लेकिन आज नहीं, इतना सोंचकर वो आगे बढ़ी ।
"रास्ता छोड़ो मेरा!......." नलिनी किसी तरह अपने गुस्से को सँभाले हुई थी।
खालिद कुछ नहीं बोला, बस बेशर्मी से उसके सीने के उभारों को देख रहा था।
"मैंने कहा मेरा रास्ता छोड़ो!........ वरना!!...." नलिनी के अपनी बात पूरी होने से पहले ही वह एक तरफ़ हट गया। नलिनी को थोड़ा आश्चर्य तो लगा लेकिन वह वहाँ से जल्दी से निकल जाना चाहती थी इसलिये वह आगे बढ़ी। गलियारा सँकरा था और उसके एक तरफ़ हटने के बाद भी इतनी जगह नहीं थी कि नलिनी आसानी से निकल सकती इसलिए वो दूसरी तरफ दीवार से सटकर निकलने लगी। वो अभी भी नलिनी के उभारों को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था, उसके मुँह से आती शराब की बदबू से उसका सिर घूमने लगा था और वो जल्दी से निकल जाना चाहती थी।
नलिनी खुद को उससे स्पर्श ना हो इसलिए धीरे धीरे सरक रही थी, सरकते सरकते वो खालिद के एकदम सामने पहुँची कि तभी वो अचानक नलिनी की तरफ झुक गया। यह सब इतना अप्रत्याशित सा हुआ कि कुछ पलों तक उसे कुछ समझ में ही नहीं आया कि क्या हो रहा है। अचानक खालिद की गर्म हथेलियों को उसने अपने उभारों पर फिसलते पाया, वो नींचे गिर गई थी और खालिद पूरा उसके ऊपर था और नलिनी को उसने कसकर जकड़ रखा था।
नलिनी पूरी ताकत से छूटने की कोशिश कर रही थी कुछ पलों के बाद जैसे ही वह उसकी पकड़ से निकली तब तक खालिद उसके पूरे बदन का मुआयना कर चुका था।
बड़ी ही बेशर्मी से हँसते हुए बोला "बड़ी गर्मी है तुझमें, .......... चल तुझे रातरानी बना दूँ!" नलिनी गुस्से से काँप रही थी, उसने आव देखा ना ताव एक जोरदार तमाचा उसने सबके सामने खालिद को जड़ दिया। उस तमाचे की गूँज बहुत दूर तक हुई, सभी लोग भय से जैसे जड़ हो गए और नलिनी की तरफ ऐसे देखने लगे मानो कहना चाहते हों कि आज इस औरत का आखिरी दिन है।
खालिद ने बहुत देरतक आँखें नहीं खोली लेकिन जब उसकी आँखें खुली तो उनमें हवस और दरिंदगी भरी हुई थी। उसने सपने में भी नहीं सोंचा कि कोई औरत उसे भरे बाजार इस तरह तमाचा मार सकती है।
खालिद को ऐसा लग रहा था कि जैसे किसी ने उसे.सबके सामने नंगा कर दिया हो, अपने अपमान से वह तिलमिलाया हुआ वह उठा और अपने कुर्ते से तलवार निकाल कर नलिनी की तरफ़ बढ़ा, नलिनी ना तो भागी और ना हि एक पल को विचलित हुई, बस अपनी जलती निगाहों से उसे अपनी तरफ़ बढ़ते देखती रही। खालिद अपनी तलवार हाथ में लिए बस एक कदम ही दूर था, अगला कदम और वो तलवार एक पल में नलिनी की जिंदगी का अंत कर देगी।
खालिद ने अपनी खूंखार आँखों से नलिनी की आँखों में देखा लेकिन नलिनी ने अपनी पलक तक नहीं झपकाई, ......... डर उसकी आँखों से नदारद था।
खालिद की तलवार उठी और एक दर्दनाक चीख गूँजी "आ!!!!!!!!!!!!!!!!!............ ह!!!!!!!!!......."।
------- कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त-------
बताना जरुर कैसा लगा यह भाग।
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आखिरी दस्तक
Actionजब नलिनी की खूबसूरती उसकी दुश्मन बनती है तो हर नज़र उसके कपड़ों के अंदर झाँकती है लेकिन वो किसी तरह इस वहशी समाज में रह रही थी, समाज के उन भूखे भेड़ियों से बचकर लेकिन आज उसका सामना हुआ ऐसी मुसीबत से जो उसके जिस्म को नोंचकर खा जाएगा और कोई उसका सामना...