दस्तक - ७ देव!!

131 4 0
                                    

गोलियों की आवाज से नलिनी के कान फटे जा रहे थे, सुबोध की तबीयत भी खराब थी लेकिन वो आश्चर्यजनक रूप से होश में था और नलिनी को थामें बैठा था।‌

"दोनों लेट जाओ!!.." तभी वो साया गरजा, दोनों घबरा कर जैसे ही दीवार से सटकर लेटे की तभी गोलियों की बौछार सीधे वहीं लगी जहां वे कुछ पल पहले थे, अगर एक पल की भी देर हो जाती तो उनकी लाश भी पहचान में नहीं आती।

यह देखकर सुबोध की तो आँखें फटी की फटी रह गई, उसने नलिनी की तरफ़ देखा तो वो अभी भी ठीक से होश में नहीं लग रही थी, नलिनी के कानों में वो शब्द गूँज रहे थे।

"आप पाँच मिनट लेट हैं मैडम!...… आज की क्लास खत्म!" देव ने सख्त लहजे में कहा।
"अरे! सिर्फ पाँच मिनट लेट होने पर क्लास नहीं लोगे?.... तुम अपने आप को समझते क्या हो?" नलिनी झल्लाकर बोली।

"कुछ नहीं!" देव ने उसकी बात काटते हुए कहा।
"यही आज का सबक है! अगर जीतना है तो वक्त की इज्जत करना सीखो..... वक्त तुम्हें खुद जिता देगा!" देव की बातों में एक अजीब सी गंभीरता थी जिसने कुछ पलों के लिए नलिनी को भी स्तब्ध कर दिया।

"जानते हो पूरा कालेज मुझ पर मरता है और मैं यहाँ तुम्हारे साथ अपना वक्त बर्बाद कर रही हूँ!" नलिनी ने नाराज़ होते हुए कहा तो देव ने तपाक से पूछा "तुम पर??...या..... तुम्हारे शरीर पर??....."

"क्या मतलब??...." नलिनी ने आँखें तरेरते हुए कहा लेकिन देव पर जैसे कोई असर ही नहीं हुआ, वो बोला "तुम्हारे शरीर के अंदर जो तुम है क्या वाकई कोई उसे समझता है? ........ क्या किसी ने उस 'तुम' को जानने की कोशिश की?"

नलिनी की समझ में नहीं आया कि वो क्या कहे इसलिए भुनभुनाती हुई वो चली गई।

कालेज में सरोज ने उसे छेड़ते हुए पूछा "कैसी रही पहली क्लास?...... सुबह के ६ बजे!....." नलिनी तो बस भरे बैठी थी सो उसने अपना सारा गुस्सा सरोज पर उतार दिया।

"तू अपने आप को समझती क्या है?.... ऐसे जानवर के साथ पढ़ने के लिए मुझे कहा!" नलिनी तो गुस्से में लाल हो रही थी और सरोज उसे देखकर बस हँसे जा रही थी।

आखिरी दस्तकजहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें