दस्तक - ३ ज़लज़ला

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नलिनी के चेहरे से बहता खून उसके कपडों से टप टप कर बह रहा था, उसके बदन पर पड़े खून के लाल धब्बे खालिद की क्रूरता का जीवंत उदाहरण थी। खालिद वाकई में किसी जल्लाद से कम नहीं था उसके एक ही वार ने उसके साथी इलियास के दो टुकड़े कर दिये,........ खून का फव्वारा छोड़ता वो बीच सड़क में गिर पड़ा,........ थोड़ी देर छटपटाया और फिर उसका बेजान सिर एक तरफ़ लुढ़क गया। सड़क पर बहता खून पास की नाली में जा मिला.......... नलिनी उसके खून से रंग गई थी लेकिन इतना सबकुछ होने पर भी उसने अपनी पलकें तक नहीं झपकाई।

खालिद स्तब्ध खड़ा थोड़ी देर तक नलिनी को देखता रहा। खालिद की आँखें नलिनी की आँखों में डर देखना चाहती थी लेकिन उसकी आँखों में तो आग थी........बगावत की......विद्रोह की। पहली बार किसी औरत ने भरे बाजार खालिद की सत्ता को चुनौती दी है, ............ पहली बार ....... हाँ पहली बार खालिद को डर लगा अपने साम्राज्य के हिलने का। उसने अपने आतंक से ही तो ये सब पाया, ये उसका डर ही था कि नेताजी ने उसे अपना दाँया हाथ माना और कमिश्नर तक भी उसका कुछ बिगाड़ ना सके ।

आज उसी दाँये हाथ को सबके सामने नलिनी की आँखों ने मरोड़कर रख दिया। खालिद ने ना जाने कितने कत्ल किए.......... ना जाने कितनी औरतों का बलात्कार किया ......... अपने कसरती हाथों से उसने ना जाने कितनी औरतों को नंगा किया।

आज पहली बार खालिद को लग रहा था जैसे उसे सबके सामने नंगा कर दिया गया हो।

दोपहर की कड़ी धूप के बाद ये आँधी कैसी चल रही है? देखते-देखते ही पूरा बाजार धूल भरी आँधी के आगोश में समा गया ......... आसमान पर उमड़ते बादलों का रुख भयानक था। अचानक ही जोरदार बारिश होने लगी, ..... नलिनी के बदन पर लगा खून धुलकर बहने लगा.......... बारिश की बूंदें जैसे नंदिनी के दामन पर लगे दाग को धोने ही आई थी।

गुस्से से भभकते हुए चेहरे पर भेड़िये सी कुटिल मुस्कान के साथ खालिद बोला "सुन रे कलुआ!!........ कल शाम को सारे मर्द यहीं होने चाहिए!", "क्यों सरकार??......" कलुआ ने डरते डरते दूर से ही पूछा।

खालिद ने गुस्से से कलुआ को एक नजर देखा फिर नलिनी की तरफ घूरते हुए बोला "बहुत आग है तुझमें! ....... कलुआ! ...... सुन!! ......... कल इसी जगह पर मेरा बिस्तर लगेगा....... बीच सड़क पर!!.......... कल इस मोहल्ले के एक सौ बत्तीस मर्द इस औरत की आग ठंडी करेंगे!!!.........यही!!........सबके सामने!!....... इसी बिस्तर पर!!!"।

नलिनी तो जैसे होश में आई और उसकी रूह तक अंदर से काँप गई यह सुनकर लेकिन खतरा तो उसने ले लिया और अब कुछ नहीं हो सकता था। वो वापस जाने को मुड़ी तभी रंगा, खालिद का चमचा बोला "सरकार!! कल की गंदी पिक्चर का आज ट्रेलर तो दिखा दो!.......", नलिनी के लिये ये खतरे की घंटी थी इसलिए उसने बिना मुड़े वहाँ से भाग निकली। खालिद के आदमी उसके पीछे तो थे पर इतने भी नहीं कि वो उसे पकड़ ना सके, ........ खालिद अपने शिकार के साथ खेल रहा था।

सारा वाकया नलिनी की आँखों के सामने घूम रहा था, वह एक मासूम सी हिरन थी और खालिद भेड़ियों का सरदार लकडबग्घा....... कल आनेवाली कयामत से बचने का कोई तरीका नहीं. समझ आ रहा था। वो अब भाग भी नहीं सकती थी, बाहर खालिद के गुंडे हर रास्ते पर थे। अब या तो कल नलिनी अपनी लुटती इज्ज़त का तमाशा बनते देखे या खुद को ही मार दे।

"हाँ!..... यही ठीक है......." सोचकर वो किचन में गई ......... इधर-उधर नज़रें दौड़ाने पर भी वो चीज नहीं मिली.......... उसने ड्रॉअर खोला.... उधर भी नहीं...... वो सोंचने लगी अचानक ही उसे याद आया...... उसने ऊपर रखे डिब्बे में से चावल की थैली निकाली और जहर की शीशी उठा ली .......।

सुबोध का चेहरा, ...... उसकी बातें......... शादी की पहली रात..... सब नलिनी की आँखों के सामने घूम रहा था मानो मरने से पहले एक बार अपनी यादों को जी भर कर याद करना चाहती हो। "मेरे होते हुए तुम्हें कुछ नहीं हो सकता........" सुबोध की बातें याद आते ही नलिनी फूट-फूट कर रोने लगी.... "अगर मौत भी आई तो उसे मुझे ले जाना होकर...."।

ना जाने वो कितनी देर तक रोती रही ....... अपनी किस्मत पर ..., आखिरकार उसने अपना मन कड़ा किया..... और जहर की शीशी धीरे-धीरे उसके होंठों की तरफ़ बढऩे लगी।
बाहर अचानक गोलियां चलने लगी...... लोगों के चीखने की आवाजें आने लगी,.......गोलियों से निढाल होते बेजान शरीरों के गिरने की आवाजें दिल दहला देने वाली थी।

.......गोलियों की आवाजें पास आ रही थीं,..... ऐसा लग रहा था जैसे कोई ज़लज़ला आ रहा हो।

"क्या खालिद आ रहा है?......" नलिनी ने खुद से ही सवाल किया...... "हो सकता है..... और कौन हो सकता है?..."। "...लेकिन?.......लेकिन..... उसने तो मुझे कल तक की मोहलत दी थी..... क्या फ़र्क पड़ता है?......"। नलिनी ने नफ़रत से दरवाजे की तरफ़ देखा ".....औरत की भूख बर्दाश्त नहीं हुई उससे? ....... वो ऐसा मर्द है जिसे औरत का मान मर्दन करने में बड़ा मजा आता है, .........मेरे सम्मान को अपने पैरों तले रौंदने की जिद!,....... मेरे आत्मविश्वास को अपने अहंकार से कुचलने का जुनून!...........भरे बाज़ार मुझे बेआबरू कर मेरे बदन को नोंच-नोंच कर खाने की हवस उसे यहाँ तक ले आई है"।

नलिनी की सुंदरता ही उसका अभिशाप बन गई है और आज वो इस अभिशाप को खत्म करती है ..... अगले ही पल में उसने जहर की पूरी शीशी खाली कर दी .......... बस अब उसे था सिर्फ और सिर्फ ..... मौत का इंतजार....।

जहर जैसे जलते अंगारे की तरह उसके हलक को चीरता हुआ अंदर जा रहा था तभी दरवाजे पर किसी के आने की आहट हुई.... "आ गया...... लकड़बग्घा!...." नलिनी ने धीरे से खुद को ही कहा। नलिनी की साँसें अब उखड़ने लगी थी, ........... अचानक एक जोरदार धमाका हुआ और दरवाजा और दीवार का कुछ हिस्सा धमाके में उड़ गया।

नलिनी समझ नहीं पा रही थी कि अंदर आने के लिए खालिद ने इस तरह से दरवाजा क्यों उड़ा दिया?...... उसे कौन रोक सकता है यहाँ?..... वह चाहे तो आसानी से उसे उठाकर ले जा सकता है लेकिन उसका यह तरीका नलिनी की समझ से परे था।

धमाके से घर की बिजली भी चली गई थी जिससे घर में अंधेरा हो गया था, ...... दरवाजा टूट जाने की वजह से बाहर के स्ट्रीट लैंप की तेज रोशनी हॉल तक आ रही थी जो दूसरी तरफ दीवार तक पड़ रही थी। नलिनी किचन में पड़ी अपनी आखिरी साँसें गिन रही थी,........ जहर अपना काम बड़ी तेजी से कर रहा था...... और नलिनी की आँखें दीवार पर पड़ती रोशनी पर थीं।

ना जाने क्यों उसे लग रहा था कि ये खालिद नहीं ...... कोई और आया है तभी अचानक मशीनगन की सैकड़ों गोलियां दीवार पर पड़ने लगी और दीवार का प्लास्टर निकलकर चारों तरफ़ फैलने लगा। किसी के गुस्से के लावे की तपन नलिनी ने भी महसूस की, ..... वो जो भी था गुस्से में पूरा घर उड़ा देना चाहता था।

गोलियां चलनी बंद हो गई थी, शायद गोलियाँ खत्म हो गई थी और चारों तरफ सन्नाटा छा गया। नलिनी अभी भी उस दीवार की तरफ देख रही थी .......धीरे-धीरे उस शख्स की परछाई दीवार पर आई, नलिनी को जैसे दो हजार वोल्ट का झटका लगा, उसके अतीत में दफन दानव आज जिंदा होकर आया है।

वो दानव! ......... जो कभी देवता की तरह था, .....और उसे नलिनी ने बनाया था। नलिनी के मुँह से खून की कुछ बूंदें छलकी, वो चीखना चाहती थी लेकिन उसमें इतनी शक्ति कहाँ बची थी, किसी तरह वो दीवार का सहारा लेकर खड़ी हुई, अपनी उखड़ती साँसों को एकत्रित कर उसने आवाज लगाई "....द....दे!...व!.......देव!!.." उस साये ने क्रोध से बिफरते हुए एक हाथ से नलिनी का गला पकड़ लिया और सीधे ऊपर उठा दिया मानो नलिनी को वह अपने हाथों से ही फाँसी दे देना चाहता हो। 

नलिनी साँस लेने के लिए तड़प रही थी कि अचानक उस साये ने उसे छोड़ दिया, वो नीचे गिर पड़ी, थोड़ी देर बाद वो वापस उठी ........ "त...डा..क!!!!!..."
तभी उस साये ने एक जोरदार तमाचा नलिनी के गाल पर मारा, नलिनी की आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा। तमाचा इतना जोरदार था कि नलिनी के गालों पर पाँचों अंगुलियाँ छप गई, उसका गाल इतना लाल हो गया मानो किसी ने होली का रंग लगाया हो।

तभी उसकी आवाज से पूरा घर थर्रा उठा ...."मैंने कहा था ना!!.......मैं तुम्हारा बुरा वक्त हूँ!!!! ......... मैं तुम्हें मार दूँगा!!!......." उस साये की आवाज़ से नफंरत की चिंगारियां निकाल रही थीं।

नलिनी की आँखों के आगे अंधेरा छा रहा था, ........ लगता है जहर ने अपना काम कर दिया। नलिनी जैसे किसी अंधेरे कुँए में गिरती जा रही थी, ...... उसे हर आवाज मंद सुनाई दे रही थी। लगता था कि वो सबसे दूर जा रही है, ...... इसी बीच उसे बस एक ही आवाज सुनाई दे रही थी "नलिनी??.....नलिनी!!!!.........", उसका अतीत उसके पीछे नंगे पांव दौड़ा आ रहा था, ... अपने लहुलुहान होते पैरों की परवाह किए बिना।

////कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त/////

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