दस्तक - ६ मुलाकात

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"द...देव!!.." नलिनी के मुँह से यही शब्द निकले।
"ये देव कौन है?.." सुबोध ने हैरान होते हुए पूछा "पहले कभी भी तुमसे इस नाम को नहीं सुना.... कौन है ये!.... देव??"

सुबोध के सवाल का कोई जवाब नहीं था नलिनी के पास, कैसे बताएं कि कौन था देव? कैसे बताएं कि क्यों उसने कभी इस नाम का जिक्र तक नहीं किया?

लगातार चलती गोलियों की आवाज भी फीकी पड़ रही थी उन तालियों की गड़गड़ाहट में जो देव-नलिनी को कालेज के एनुअल फंक्शन में मिली थी। दोनों ने जो परफॉर्मेंस दिया था वो इतना फेमस हुआ था कि अखबार में उनकी फोटो तक छपी थी। एक साल पहले जब देव पहली बार कालेज आया था तो वो एकदम चुप रहने वाला अंतर्मुखी स्वभाव का था, ना किसी से बात करना, ना किसी लड़की की तरफ़ देखना। जो भी हो लेकिन पढ़ाई में कोई उसे टक्कर नहीं दे सकता था, वह गरीब घर से जरूर था लेकिन वो प्रतिभा से गरीब नहीं था।

नलिनी दूसरी तरफ एकदम चंचल और बिंदास लड़की थी। खूबसूरत तो इतनी थी कि हर लड़का उसको देख कर आहें भरता लेकिन उसके बाप के डर से कोई भी हिम्मत नहीं करता नलिनी के पास भी फटकने की। नलिनी के पिता यशवंत सिंह परमार शहर के मेयर थे, उनके एक इशारे पर पूरा शहर बंद हो सकता था। अब उनकी तैयारी राज्य सरकार में मंत्री पद पाने की थी।

"अरे यार सरोज! अगले हफ़्ते एग्जाम है और मेरी कोई तैयारी नहीं है!...... मैं तो फेल हो जाऊंगी!!" नलिनी ने वोदका का शाट लगाते हुए कहा।

"कुछ नहीं होगा यार! तेरे पापा तो मंत्री बनने वाले हैं.... वो चाहे तो तुझे ही नहीं बल्कि पूरे कालेज को बिना एग्जाम के पास करा सकते हैं" उसकी सहेली सरोज हँसते हुए बोली।

"तू भी ना यार! ...... अगर पास नहीं हुई तो पापा मेरी शादी उनके दोस्त के लड़के से करा देंगे!.... कुछ कर ना यार!" नलिनी तुनक कर बोली।

"ठीक है बाबा! ...... कुछ सोचते हैं" सरोज यह कहकर कुछ सोचने लगी फिर थोड़ी देर में बोली "देव!...."।
"कौन देव?..." नलिनी ने पूछा।

"अरे वही जो तीन महीने पहले ही कालेज में आया है,........" सरोज ने अंगुलियों को घुमाते हुए कहा।

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