दरवाजे पर लगातार दस्तक हो रही थी, बाहर खड़े गुंडे दरवाजे से कान लगाए किसी भी आहट का इंतजार कर रहे थे। नलिनी बुरी तरह से घबराई हुई थी और डर के मारे देव के पीछे चिपक कर खड़ी थी, तभी उसने सुबोध की तरफ़ देखा और उसे अपनी स्थिति का अहसास हुआ, अपने पति के सामने वह एक अजनबी के इतने पास क्यों खड़ी थी?
जितनी सुरक्षित वो देव के पास महसूस कर रही थी उतनी सुरक्षा का अहसास उसे उसके पति के साथ क्यों नहीं हो रहा था?नलिनी के पास इसका कोई जवाब नहीं था और वह शर्मिंदा होकर देव से दूर हट गई। सुबोध से नजरें मिलाने की हिम्मत नहीं हो रही थी उसकी, सुबोध यह भाँप चुका था इसलिए उसने खुद आगे बढ़कर नलिनी को गले लगा लिया। "कोई बात नहीं, मुझे तुमसे कोई शिक़ायत नहीं है!" सुबोध ने उसके कान में चुपके से कहा।
"धम्म!!!!..." अचानक किसी ने दरवाजे पर कोई भारी चीज से प्रहार किया, शायद वे हथौड़े से दरवाजे को तोड़ देना चाहते थे। तभी दूसरा प्रहार हुआ और दरवाजा अपनी जगह से हिलने लगा। अंदर खड़े दोनों आदमियों ने पहले एक-दूसरे की तरफ़ देखा और फिर उनकी निगाहें उनके लीडर पर टिक गई मानों वे पूछ रहे हो कि अब क्या करना है।
लीडर ने उन्हें कुछ इशारा किया और उनमें से एक तुरंत अंदर गया और दो AK-47 रायफल ले आया, एक रायफल उसने अपने साथी को दी और दूसरी वो खुद लेकर दरवाजे पर निशाना साधकर खड़ा हो गया। लीडर ने एक हाथ से अपनी गन निकाल ली और उसके दूसरे हाथ में एक हैंड ग्रेनेड तैयार था। दरवाजे पर तीसरा प्रहार हुआ और वो चरमराने लगा, एक और हथौड़े का वार वो दरवाजा नहीं सह पाएगा।
नलिनी का दिल इतनी तेजी से धड़क रहा था कि लग रहा था कि वो उसकी छाती से बाहर ही ना निकल जाए। सुबोध को भी आने वाली दर्दनाक मौत की आहट मिल गई थी और वो भी हार मानकर सोफे पर बैठ गया। देव घायल जरूर था लेकिन इस वह होने वाले प्रचंड मुकाबले से लड़ने के लिए पूरी तरह से तैयार था लेकिन इस बार कुछ अलग था, उसकी आँखों में नलिनी के लिए नफ़रत की जगह चिंता थी।
उसके माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई थी लेकिन उसके इरादे अभी भी अडिग थे, नलिनी के लिए वह पूरी दुनिया से लड़ने के लिए तैयार था।
अचानक दरवाजे पर चलने वाले हथौड़े चुप हो गए, दरवाजे पर होने वाले प्रहार यकायक ही बंद हो गए। थोड़ी देर में उन गुंडों के वापस जाने की आहट हुई और वो सारे गुंडे नीचे जाने लगे जैसे किसी ने उन्हें बुलाया हो। किसी की कुछ समझ में नहीं आया कि अचानक क्या हुआ लेकिन नलिनी ने कुछ पलों के लिए राहत की साँस ली।
थोड़ी ही देर में उनके फ्लोर पर पहले की तरह ही शांति छा गई। बड़ी देर तक कोई कुछ नहीं बोला, लीडर और उसके दोनों साथी उसी तरह से हथियार लिए खड़े थे, यह उनकी कोई चाल भी हो सकती है
लगभग एक घंटे तक कोई नहीं आया तब वे तीनों थोड़ा रिलेक्स हुए, "वो वापस आएंगे!!..." देव ने चुप्पी तोडते हुए कहा, लीडर ने सहमति में सिर हिलाया, "भूतनाथ!..." लीडर ने देव की तरफ़ देखते हुए अपना परिचय दिया, भूतनाथ! बड़ा अजीब नाम था उसका।
"बूडा!.... पेस्ट!" लीडर ने अपने दोनों साथियों की तरफ़ इशारा करते हुए कहा।
"देव!.., नलिनी!..... मैं सुबोध!" सुबोध ने तीनों का परिचय दिया।
"ये लोग तुम्हारे पीछे क्यों पड़े हैं? भूतनाथ ने सवाल किया तो तीनों ने कोई जवाब नहीं दिया।
"तुम तीनों कौन हो? और इतने हथियार या तो आतंकवादियों के पास होते हैं या फिर स्पेशल फोर्स के कमांडो के पास!" देव के सवाल ने दोनों आदमियों को हतप्रभ कर दिया लेकिन उनके लीडर भूतनाथ को जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ।
"तुम्हारी नज़र की तारीफ करनी पड़ेगी!" भूतनाथ ने बड़े आराम से बैठते हुए कहा।
"हम देश के रखवाले ही हैं और तुम लोगों की वज़ह से हमारा मिशन खतरे में पड़ गया है!" भूतनाथ ने तीखे लहजे में कहा।
/////कहानी जारी रहेगी, मिलते हैं अगले भाग में////
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आखिरी दस्तक
Actionजब नलिनी की खूबसूरती उसकी दुश्मन बनती है तो हर नज़र उसके कपड़ों के अंदर झाँकती है लेकिन वो किसी तरह इस वहशी समाज में रह रही थी, समाज के उन भूखे भेड़ियों से बचकर लेकिन आज उसका सामना हुआ ऐसी मुसीबत से जो उसके जिस्म को नोंचकर खा जाएगा और कोई उसका सामना...