अपमान

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खालिद अपने गुंडो के साथ जा चुका था जिसकी वजह से पूरे फ्लोर में शांति छा गई थी, शांति...... तूफान के आने से पहले की शांति। 

थोड़ी देर तक कोई कुछ नहीं बोला फिर अचानक भूतनाथ ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा "यहाँ रुकना ठीक नहीं है, ......हमें यहाँ से निकलना होगा"

"बूडा!...." उसने बूडा की तरफ़ देखते हुए कहा। बूडा तो जैसै नींद से जागा था लेकिन अगले ही पल वो संभल गया, उसने अपनी गन रिलोड की और भूतनाथ के पीछे चल पड़ा।

उन्हें देखते ही सुबोध भी पीछे चल पड़ा लेकिन नलिनी इतने शॉक में थी कि उसने कुछ सुना ही नही। जब सुबोध ने उसे देखा तो उसने आवाज़ दी "नलिनी!" लेकिन नलिनी वहीं पर खड़ी रही एकदम बुत की तरह, वो ना कुछ बोल रही थी और ना ही कुछ सुन रही थी, उसकी आँखों से आँसु बह रहे थे।

जब कई बार आवाज़ देने पर भी उसने नहीं सुना तो भूतनाथ और बूडा ने पलटकर देखा।

सुबोध नलिनी से थोड़ा दूर था लेकिन देव नलिनी के पीछे ही था, वो भी नलिनी का हाल देख रहा था लेकिन उसके मास्क के पीछे छुपे चेहरे से पर कोई भावनाऐं नहीं थी। उसकी आँखों में बस नफ़रत थी, बेतहाशा नफ़रत, नलिनी से उसकी नफरत बर्दाश्त नहीं हो रही थी।

सुबोध ने देव की तरफ देखा और आँखों से ही मदद माँगी, देव कुछ पलों तक हिला भी नहीं फिर अचानक वो नलिनी के पास आया और  उसने जोर से एक थप्पड़ नलिन को लगा दिया। सुबोध उसकी हरकत पर अवाक रह गया, भूतनाथ और बूडा भी थोड़ी देर तक कुछ नहीं बोले फिर आगे चलने लगे।

देव ने नलिनी का हाथ पकड़कर उसे लगभग खींचते हुए चलने लगा और सुबोध के पास जाकर उसने उसे धकेल दिया। नलिनी लड़खड़ाकर सुबोध के कदमों में गिर पड़ी, सुबोध ने उसे संभालते हुए उठाया, वो कुछ कहना चाहता था देव से लेकिन उसकी आँखों में प्यार और नफ़रत के चलते द्वंद की वजह से उसने चुप रहने में ही भलाई समझी। सभी नीचे की तरफ़ जाने लगे।

नलिनी अब टूटने लगी थी, देव की नफ़रत उसे तिल-तिल कर तड़पा रही थी। एक तरफ तो देव उसके लिए सारी दुनिया से लड़ने को तैयार था वहीं दूसरी तरफ़ उसकी आँखों में नफरत के सुलगते अंगारे नलिनी की आत्मा तक को झुलसा रहे थे। जिन आँखों में उसने अपने लिए बेहिसाब प्यार देखा था आज उन्हीं आँखों मे उसके लिए घृणा थी मानों उसने कोई गुनाह किया हो।

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