और भई साथी!
निराश हैं!
हर चीज़ से हताश हैं!
ये आंसू जो निकल नहीं पा रहे आँख से,
मानो कोई मुरझा सा पत्ता हो शाख़ पे।
ये अल्फाज़ जो दिमाग़ से होंठों पर नहीं आ पाए,
मानो कोई बारिश की बूंद आसमान में ही खो जाए।कोशिश कर साथी!
उन अल्फाज़ को इन आंसुओं से बताने की,
इन आंसुओं का भार अब आँखों से निकलने की।
रोले, रोले, चिल्लाना है चिल्ला ले,
पर फिर एक बार आइने में मुस्कुरा के खुद को तू देख ले।मुस्कुरा, छाए आँखें कितनी ही नम हो,
उठ फिर से, छाए थोड़ा ही दम हो,
उठ के लिख ले एक कहानी,
आख़ो देखी, मुझ ज़बानी।