तप्त दोपहरी में तेरी याद में, मेरे हाथ में चाय का प्याला,
तेरा ऊँचा कद, रेशम से बाल और रंग सावला,
बातों-बातों में जब तू अपने हाथ से अपने बाल संवारे,
और हाय! तेरे नखरे, कितने प्यारे।बता, कैसी लड़की चाहिए तुझे,
जंगली जैसी पर जो रानी की तरह सजे,
गाली भी दे पर प्यार पूरा लुटाए,
जो तेरे लिए सब आशिकों को हटाए।मैं ही हूँ ऐसी लड़की,
कहाँ मिलेगी मेरी जैसी?
मान भी जा अब, तेरे लिए मैं ही हूँ अकेली,
मत बोल मुझे तेरी सहेली।बस मुझसे अब इंतजार नहीं हो पाएगा,
फूल लेने तो तब आएगा, जब ये फूल ही मुरझा जाएगा।
अब नखरे छोड़, और बोल दे हाँ!
ना सुनते-सुनते मेरे कानों से खून बहुत निकल चुका,बस अब और मत तड़पा,
तेरे बिना क्या हाल है मेरा? तू क्यों नहीं समझता?
मेरी साड़ी भी हो गई पुरानी शादी के इंतजार में,
भूखी रही मैं हर सोमवार में।कितनी बार और अब सोलह सोमवार का व्रत रखूँ,
कब अपने हाथों पे तेरे नाम की मेहंदी लगवाऊँ?
नाच लिया सबकी बारातों में,
अब ले आ तू भी बारात, कोई शुभ मुहूर्त देख के।इतना कहने के बाद तो बेशरम सुन ले मेरी,
कब पहनने को मिलेगी लाल साड़ी और चुनरी सुनहरी?
कहाँ मिलेगी तुझे मेरे जैसी?
पर तू बेशरम लाएगा हार जब होगी मेरी तेहरी।