Shatranj ka khiladi

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आँखों में चमक उसकी सूरत बहुत ही प्यारी है,
देखा खेल मैंने उसका, वो शतरंज का खिलाड़ी है,
मीठी मीठी मुस्कान है उसकी, बातें भी हैं चाशनी,
लंबा कद-काठी का, आँखें भी हैं सुनहरी।

लड़कों और मैं, दोनों में था छत्तीस का आंकड़ा,
पर हे ऊपरवाले, ये कौनसा और कैसा है लड़का,
जो देख ले इसकी आँखों को, तीन-चार महीने तक सोया न करे,
जो इससे सुन ले दो शब्द भी, इसी की शब्दों में खो जाया करे।

मरती होंगी इसपे कई हसीना,
पर मेरी जैसी, कहाँ मिलेगी कोई प्रेमिका?
मेरे भी रूप के किस्से हजार,
नखरा मेरे जैसा कोई तीखी तलवार।

हम दोनों ही हैं, एक दूसरे के लिए बने,
पर वो कैसे समझे,
जब एक बार भी न की हमने बात,
जब एक बार भी न थामा हाथ।

मैंने उसे देखा, उसने शायद मुझे देखा होगा,
पर कैसे बात करूँ उससे, ये मुझसे न होगा!
पर न बोला तो कोई और चुरा लेगा मेरा हमसफ़र,
ये सब सोचते सोचते ही हो गई सुबह से दोपहर।

तपती दोपहरी में किसी ने पीछे से मुझे पुकारा,
"ऐ, ज़रा सुनना," और हाथ आगे बढ़ाया,
बोला वो, "देखा आपको कई बार,
पर हिम्मत को जुटाने में बीत गई कई सोमवार।"

मैं वहाँ धूप से ही लाल थी, और अब शर्माकर गुलाब,
बात करते ही मुझे हुआ नशा बिन शराब।
मैंने पूछा, "कल चाय पे मिले?"
फिर वो बोला, "फिर किताब खरीदने चले?"

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