Meri aankhein

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ये चाँद सी चमकती आँखें,
ये समुंदर सी गहरी आँखें।

इन आँखों में ये काली रात जैसा काजल,
इन आँखों में बसा है पूरा समस्त सावन।

ये आँखें ज़रा देखो, हैं कितनी प्यारी, कितनी भाती,
सुनो तो ज़रा, वो बातें जो मेरी आँखें हैं बताती।

ऐसी आँखें भला हैं मुमकिन?
हाँ हैं, मैं ही हूँ इन आँखों की मालकिन।

इस श्रृंगार रस की कविता में नायिका हैं मेरी आँखें,
और नायक हूँ मैं।

और कोई नायक क्या ही मेरी ज़िन्दगी में आएगा
जो मेरी आँखों पर मुझे बेहतर लिख पाएगा?

मैं हूँ खुद की पहले प्रेमिका,
पहले प्रेम पर तो महाकाव्य है।

बस फर्क सिर्फ इतना है, कि वो प्रेम दो जोड़ी आँखों की बात है,
मेरे काव्य में ये एक जोड़ी ही काफी है।

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