किताबों के उन पन्नों में खो सा जाना चाहती हूँ।
कलमों से थोड़े प्रेम से लिखना जानना चाहती हूँ।
उस फीके से कागज़ को रंगों से भरना जानना चाहती हूँ।
बिंदी, चूड़ियों और पायलों में अपने आप को सँवारना चाहती हूँ,
पतों की सरसराहट में सुकून ढूंढना चाहती हूँ,
मंदिरों की उन कलाओं को निहारना चाहती हूँ,
खाने के लिए गलियों में भटकना चाहती हूँ,
संगीत की धुनों में बस खोना चाहती हूँ।
किताबों से भरा एक घर,
पेड़ों से घिरा एक घर,
उसमें मैं रहना चाहती हूँ...
काली साड़ी, और वो चांदी के गहने,
बस मुझे वही पहनने हैं,
और कुछ नहीं मांगती मैं, बस
बस अपने लिए अपने आप से थोड़ा सा समय मांगती हूँ,
कि बस ये सब मैं कुछ सालों में करके दिखाती हूँ,
इतनी हैं ख्वाहिशें,
इतनी सारी चाहतें,
इतने हैं अरमान दिल में,
कि वो अब नहीं पिरोए जा रहे शब्दों में।
शब्दों की मानो कमी सी आ गई है,
पर एक छोटी सी छोटी ख्वाहिश को लिखने की कोशिश जारी है,
और रहेगी वो जारी उम्र भर,
क्योंकि इच्छाएं हैं अनंत, रहती उम्रभर जैसे कोई हमसफ़र।
अब क्या ही औरों में हमसफ़र की खोज की जाए,
जब अपने अंदर ही हमसफ़र जैसे इतनी हैं इच्छाएं।
इच्छाएं ही जिंदगी को जीने का मकसद दे देती हैं,
और इच्छाएं पूरी होने पर थोड़ी सी खुशी दे देती हैं।
इतनी तो प्यारी हैं इच्छाएं,
इनसे क्यों रखना फ़ासला।
इन इच्छाओं को भी तो करो कभी पूरा,
अब इस छोटी सी जिंदगी में क्यों ही छोड़ना कुछ अधूरा।
पर अफ़सोस, ये इच्छाएं रह जाती हैं अधूरी,
चाहे कितनी ही कोशिश हो उन्हें करने को पूरी।
अब मैं जानती हूँ कि मेरी एक ही इच्छा रहेगी अधूरी,
कि कोई भी इच्छा रहे न अधूरी।