कलाज्ञान

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अब इस बार हिमा के १ नहीं, बल्कि २–२ शिष्य उससे मिलने आए थे। परंतु हिमा उन दोनो को इतनी रात्रि में अपने कक्ष में देख हड़बड़ा गई। वह दौड़ कर गई और अपने कक्ष के द्वार को अंदर से बंद कर लिया और वापस आई।

हिमा समझ गई की वह दूसरा व्यक्ति पाखी का कोई साथी ही होगा। वह उन दोनो की ओर कुछ गंभीरता से सोचते हुए देख रही थी।
अगम ने हिमा से कहा,"देवी छायंतर!! आप का रूप अवश्य बदल गया है, परंतु इस रूप में भी आप उतनी ही आकर्षक लग रही हैं जितने पहले लगती थीं।

हिमा ने तब अपना मौन तोड़ा और उनसे पूछा," अर्थात, हम एक जैसे नहीं दिखते ? अर्थात पूर्वजन्म में और इस जन्म में हमारा रूप विभिन्न है। तो तुम लोगो ने हमे पहचाना कैसे ? तुम इतने विश्वास के साथ कैसे कह सकते हो की हम ही छायांतर हैं? कोई और भी तो हो सकते हैं हम ?? "

अगम, जिसके वस्त्र काले और सफेद रंगों के थे, एक आकर्षक मुस्कान लिए खड़ा था, खलनायक तो वो लग ही नहीं रहा था, परंतु उसमे ऐसा कुछ तो था, जो उसे बिना किसी भयानक भाव के होते हुए भी भयानक बना रहा था। कदाचित, उसके मुस्कान के पीछे छिपे गुस्से के कारण।

एक मस्करी भरे भाव के साथ उसने बोलना प्रारंभ किया,
" देवी, आपको ज्ञात होगा की साधारण मनुष्य अपने मस्तिष्क का केवल ५% भाग का प्रयोग करता है। परंतु आप साधारण मनुष्यों से भिन्न थी। आपके पास ज्ञान पा कर अपनी क्षमता को बढ़ाने का सामर्थ्य था। आप जितना ज्ञान प्राप्त करती, आपके मस्तिष्क की क्षमता उतनी ही बढ़ती जाती। कलाज्ञान की पूरी ९५ पुस्तकें थी, जिनमे अपने मस्तिष्क के विभिन्न भागों को उन्मुक्त (unlock) कैसे किया जाए, इन सब की जानकारी थी। एक साधारण मनुष्य अपने एक जीवन में केवल १ ही पुस्तक पढ़ पाता था, चाहे वह कितना भी बड़ा ज्ञानी क्यों न हो।

परंतु आपने केवल २० की आयु में, २० पुस्तकें पढ़ कर उनका ज्ञान प्राप्त कर, अपने मस्तिष्क का २५% भाग उन्मुक्त (unlock) कर लिया था। यह थी आपकी क्षमता। आपने हम दोनों के मस्तिष्क की ज्ञान कोशिकाओं को अपने रक्त की कोशिकाओं से जागृत किया, जिस कारणवश, आपकी कोशिकाएं कही न कहीं हमारे अंदर भी हैं।

यदि आपको कुछ होता है , तो आपकी पीड़ा हमे भी अनुभव होगी। आपकी शक्ति बढ़ेगी, तो हमारी शक्ति भी बढ़ेगी, और यदि आपकी शक्ति कम हुई, तो हमारी शक्ति भी काम होगी।"

तब हिमा ने उसे बीच में टोकते हुए कहा," ओह!!! अर्थात, जैसे ही हमारी शक्ति जागृत हुई, तुम्हारी शक्तियां भी पुनः जागृत हो गईं। और तुम्हे पता भी चल गया की हम कहां हैं, और कोन हैं,क्योंकि, तुम्हारी शक्ति हमसे ही जागृत होती है, है ना?

पाखी ने उत्तर दिया," जी हां, देवी। अब बताइए, अपने परवजन्म के लक्ष्य को कब पूर्ण करना चाहेंगी ? आप आज्ञा दी जिए और हम.... ।

इससे पहले पाखी आगे कुछ कह पाती , हिमा ने परेशान होकर उसे बीच में ही रोक कर कहा," नहीं!! वह पूर्वजन्म था। हमे नही ज्ञात हमारे साथ तब की हुआ की हम इतनी बड़ी खलनायिका बन गई। परंतु यह हमारा नया जन्म हैं। और इस जन्म में, हम कोई कुकर्म नही करना चाहते।"

यह सब सुनकर पाखी और अगम अचंभित रह गए। "यह क्या कह रही हैं आप??? और जो इस विश्व ने आपके साथ किया उसका क्या ?? उसके प्रतिकार का क्या ?? हमारे प्रतिकार का क्या ???" पाखी ने क्रोधित होते हुए पूछा।

अगम केवल एक बिना भाव की मुस्कान लिए अपने स्थान पर खड़ा था।

हिमा ने परेशानी में एक लंबी आह भरी, और कहा,"देखो, जो कुछ भी हुआ, तुम और छायांतर , तुम सब उसका दंड विश्व को दे चुके हो। हमने सुना था, कि आधा विश्व संपन्न हो चुका था। अब और क्या चाहते हो ??

अगम और पाखी थोड़ा शांत हो गए और गंभीरता से हिमा की बाते सुनने लगे।

"तुम्हारा प्रतिकार छायांतर ले चुकी है। विश्व को दंड मिल चुका है। अब कदाचित तुम दोनो को भी अपना जीवन शांति से व्यतीत करना चाहिए।"

"तुम हमारी देवी नहीं हो सकती!! वह ऐसा कभी नहीं कहती!! इस नए मस्तिष्क में छायांतर ने प्रवेश तो कर लिया है, परंतु अब हम उसी दिन लौटेंगे, जब तुम्हारे मस्तिष्क में केवल मेरी देवी छायांतर का राज होगा!!!।

पाखी क्रोधित होते हुए , अगम का हाथ पकड़ कर स्थानांतरण करके उसे अपने साथ ले गई।

हिमा चिंतित होते हुए चिल्ला पड़ी,"अरे उस दूसरे शिष्य का नाम तो बताती जाओ!!...... चले गए। परंतु एक बात तो पक्की है, अब ये लोग समारोह में विध्न तो नही डालेंगे!!!"

हिमा प्रसन्नता से ताली बजाने लगी, और प्रसन्नता में ही बिस्तर पर जा के, और चादर ओढ़ कर सो गई।

अतः स्वागत समारोह का दिन आ ही गया, जब पूरे राज्य में खुशहाली छाई है। या फिर....
कहीं कुछ होने तो नही वाला??

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