स्वागत समारोह

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पूरे २ दिन शांति से बीत गए, और स्वागत समारोह का दिन आ गया। हिमा तो पूरी रात उत्साह के कारण सो नहीं पाई, और अब जब दासियां उसका श्रृंगार कर रही थी, तो वह पूरी तरह निद्रा में थी। बार बार निद्रा से नीचे झुक जा रही थी। सारी दासियां उसे "कितनी प्यारी है" की दृष्टि से देख रही थीं, और मुस्कुरा कर उसका श्रृंगार कर रही थीं।

एक क्षण के लिए, वह बैठे बैठे ही सो गई। यह दासियों के लिए तो हसा देने वाली बात थी। परंतु हिमा को उसी बीच फिर एक विचित्र स्वप्न आया। उस स्वप्न में हिमा एक सूखे जंगल के बीच रोते हुए बैठी हुई है। उसके समक्ष एक अत्यंत सुंदर युवती, राजकीय गुलाबी वेशभूषा में, गहनों में सजी धजी , पीछे दो सैनिकों के साथ, एक दुष्ट मुस्कान के साथ खड़ी थी। उसके समक्ष एक चोटी बच्ची अपने अंतिम सांसें गिन रही थी, और अत्यंत दुर्बल आवाज में के रही थी,"जीजी..... जीजी....।"

उस युवती ने अपना खंजर निकला और उस छोटी बच्ची के पेट में घोंप दिया। हिमा यह देख कर अत्यंत क्रोधित हो गई और क्रोध में अपना हाथ "नहीं........." कह कर आगे बढ़ा दिया। परंतु उस भयानक दृश्य के झटके से स्वप्न उसी समय टूट गया और उसने अपना हाथ सच में आगे बढ़ा दिया, जिससे हिमा के समक्ष रखा हुआ श्रृंगार का समान नीचे गिर गया।

सारी दासियां घबरा कर हिमा की ओर देखने लगी। हिमा को जैसे ही अनुभूति हुई, की वह बैठे बैठे सो गई थी, वह लज्जित हो गई और सिर झुका कर , आखें बंद कर , दासियों से ही क्षमा मांगने लगी। दासियों ने उसे संभाला और फिर से उसका श्रृंगार करने लगी।

आज हिमा सत्य में एक महारानी जैसी लग रही थी। अत्यंत सुंदर कपीश (maroon) लहंगा, गहनों की बौछार, और आकर्षक श्रृंगार। हिमा तो स्वयं अचंभित हो कर स्वयं के प्रतिबिंब को देखी जा रही थी..."यह, हम ही है ना??" और दासियां उसे देख कर, उसके भोलेपन पर मुस्कुरा रही थीं।

बाहर से दूसरी दासी आई और कहां की समारोह आरंभ होने वाला है, इसलिए छोटी रानी को राजदरबार के लिए प्रस्थान करना चाहिए। हिमा अपने कक्ष से बाहर निकली , तो बाहर, तीनों रानियां– रानी नैत्रा, रानी नियति, और रानी निशा, हिमा को राजदरबार ले जाने आ चुकी थी।

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