कलम की नोक

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स्वागत समारोह के लिए अब २ दिन शेष रह गया था। हिमा ने अपने कक्ष के सभी खिड़की दरवाज़े बंद करके , सभी सेविकाओं को अपने कक्ष के बाहर भेज दिया था। अंदर हिमा अपने बिस्तर पर पलथा जमके, अपना दाहिना हाथ अपने दाहिना गाल पर रख कर, और अपना बाहीना हाथ अपने बाहिने घुटने पर रख कर, विचित्र ढंग से बैठ के, एक गंभीर विचार में डूबी हुई थी। बालकों भांति दिख रही थी।

दूसरी ओर हिमा के कक्ष के बाहर मुख्य सेविका शीतल अन्य सेविकाओं के साथ छोटी रानी के बारे में बाते कर रही थी....

शीतल:(चिंता में) हमें तो भय लग रहा है, की फिर से कक्ष के अंदर से ही हमारी छोटी रानी गायब न हो जाएं! और अंदर जा भी नहीं सकते अन्यथा उनकी आज्ञा के विरुद्ध होगा!"

ऋतु: हमें तो समझ नहीं आ रहा कि महाराज ने विवाह के लिए इन्हीं को क्यों चुना। हमने तो सुना था कि इनकी जो ३ बहने हैं, वह इनसे बहुत अधिक बुद्धिमान हैं। और ये चारों बहनों में सबसे कम बुद्धिमान थी। आखिर महाराज ने इन्हें चुना क्यों??

शिखा: (गर्व से मुस्कुराते हुए) हम जानते हैं महाराज ने इन्हें कैसे चुना।

ऋतु और शीतल दोनों शिखा की इस बात को सुनकर उसे बताने के लिए विनती करने लगे कि शिखा उन दोनों को भी बताए कि महाराज सोम ने छोटी रानी हिमा को ही क्यों चुना।

शिखा: .. बताते हैं! बताते हैं! हुआ यह था कि....

महाराज दुष्यंत की चारों बेटियां.... ग्रीष्मा, वृष्टि, शारदा, और हिमा, चारों में से किसी एक को चुनना, यानी रेत के ढेर में से १ कण को ढूंढने समान था। अत्यंत कठिन। वैसे तो राजकुमारी हिमा की नाक,थो..ड़ी सी उठी हुई है, जो सुंदरता को कम कर देता है, परंतु उसके विपरीत, राजकुमारी हिमा की सुंदरता और खिल उठती है।

तो चारों में से किसी एक कन्या को चुनना कठिन था। पर फिर महाराज सोम के मस्तिष्क में क्या आया क्या पता। उहोंने चारों राजकुमारियों को अपने समक्ष बैठा दिया, और एक सरल सी नीति अपनाई। महाराज ने चारों राजकुमारियों के समक्ष, अपने दाहिने हाथ से एक कलम को एक पटल (Table) पर रखा और उसे घुमा दिया!
कहने लगे,"पहली बारी में जिसपर इस कलम की नोक आकर रुकेगी, हम उसी से विवाह करेंगे।"

महाराज के इस नीति को देख कर, सभा में सब अचंभित रह गए थे। वह महाराज सोम, जो अपना हर कार्य सोच विचार किए बिना आरंभ करते ही नहीं थे, आज उन्होंने भाग्य का सहारा कैसे ले लिया?!

और जो हुआ , सब समझ ही गए होंगे। वह नोक आकर हमारी छोटी रानी हिमा की समक्ष रुक गई। परंतु उस समय राजकुमारी हिमा यह देख कर क्रोधित हो गई थी, की वह तो सबसे छोटी है, परंतु तब भी, अब उसे ही सबसे पूर्व विवाह करना होगा।"

यह कथा सुन कर ऋतु और शिखा दोनों अचंभा में थे।
ऋतु कहने लगी,"तो अर्थात, छोटी रानी हिमा केवल भाग्य से रानी बनी हैं ?"

शिखा आगे बोली,"हां, और महाराज ने पूरे स्वर्गायु में घोषणा करवा दिया कि राज्य की चौथी और अंतिम रानी आने वाली है और अब से उन्हें सब "छोटी रानी" कह कर संबोधित करेंगे।"

*धड़ाम!!!!!* तीनों सेविकाएं द्वार जोर से खुलने की आवाज से डर गई, और पलट कर हिमा के कक्ष के द्वार की ओर देख। वहां पर हिमा मुस्कुराते हुए खड़ी थी, पर वह मुस्कान निराशा भरी लग रही थी।

सेविका शीतल ने विचित्र ढंग से मुस्कुराते हुए पूछा,"छ... छोटी रानी जी???? आप को कुछ...."

हिमा ने शीतल को बीच में ही काटते हुए कहा। "हमें लगा नहीं था कि हमारा भाग्य इतना क्रूर हो सकता है, हम अभी सुरक्षित अपने माता पिता के साथ उनके महल में होते यदि हमारे भाग्य और महाराज की कलम ने मिलकर हमारे साथ यह छल न किया होता!" यह कहते कहते हिमा के नेत्रों से अश्रु बह रहे थे परंतु तब भी हिमा मुस्कुरा रही थी।

सेविकाएं हिमा को देख कर भयभीत हो गईं और हिमा को खींच कर जल्दी से स्नान कराने ले गई। परंतु अब हिमा को अपने भाग्य से कोई आशा नहीं बची थी। रात्रि में बिस्तर पर लेटे लेटे, हिमा सोच रही थी, की हिमा का भाग्य अत्यंत बुरा है, वह किसी भी चीज के लिए भाग्य पर निर्भर नहीं हो सकती, यदि उसे सुख से रहना है, तो उसे स्वयं कुछ करना होगा।

इतने में फिर से, पाखी हिमा की कक्ष में प्रकट हो गई। और इस बार , पाखी अकेले नहीं ,अपने एक और साथी को संग लाई थी। छायांतर का दूसरा शिष्य: अगम।

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