रंजिश

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क्यों परेशान हो ऐ दोस्त,
कौन सा ग़म है जो तुम मुझे बता नहीं पाते।
पड़े हो यूँ चुपचाप तुम हताश होके,
कैसा भार है मन पे जो तुम बँटा नहीं पाते।
एक तुम्हीं ने समझा था मेरी ख़ामोशी को,
मेरी तनहाईओं को भाँप लिया था तुमने।
मेरे दिल में बहार लाने वाले,
मेरे होंठों पे मुसकुराहटें खिलाने वाले दोस्त,
अपना दुख मुझ से छुपा कर
मुझे बेगाना कर दिया है तुमने।

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