पिघल कर प्यार की तपिश में चाँद,
बह निकला है नरम मक्खन की तरह।
शहद सा घुलता रहा पानी में जैसे,
क़तरा-क़तरा जो टपका चाँद रात भर।
चाँद
पिघल कर प्यार की तपिश में चाँद,
बह निकला है नरम मक्खन की तरह।
शहद सा घुलता रहा पानी में जैसे,
क़तरा-क़तरा जो टपका चाँद रात भर।