औरत

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कभी मेरे ख़्वाबों के पंख हुआ करते थे,
आसमान की तरफ़ नज़र रहा करती थी।
चाँद पर पहुँचने की ख़्वाहिश थी मन में,
सितारों को जा छूने की तमन्ना थी मेरी।
ग़मों की आँच से झुलस गए पंख मेरे,
वक़्त ने जाने कहाँ ला के पटका।
ज़िंदगी की बेरहम चोटों ने तोड़ दिया मुझे,
बिखर गया वजूद मेरा होकर ज़र्रा-ज़र्रा।

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