तुम

34 4 1
                                    

हर क्षण मेरे दिलो-दिमाग़ पे छाए हो,
क़तरा-क़तरा मेरी रग-रग में समाए हो।
तुम्हारे ही ख़यालों में रहती हूँ पल-पल गुम,
मैं कहाँ हूँ मुझमें अब, हो बस तुम ही तुम,
तुम ही तुम, तुम ही तुम....।

दोस्त जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें