देखो~मैं आज़ाद बना ।
मैं इसलिए आजाद नहीं ..
कि मुझे सहानुभूतिवश छोड़ा गया ; कैद से
या उन्होंने मानवता दिखाई ,
या मेरी जिजीविषा प्रबल रही,
और मुझे मौका मिला !नहीं~~नहीं
ये सत्य नहीं...।बल्कि मैं आज़ाद बना~
क्योंकि मैं, पिंजरे में कैद, वो पंछी रहा~
जो सूरज को तकता रहा-
जिसके पँख कटे थे-
जो सदा जागता रहा-
जिसने सूर्य को जीवित रखा, अंधकार में ।हाँ~जिस दिन अंधेरे की
गुलामी ओढ़ लूँगा ; मैं
उस दिन सहर्ष-
पिंजरे में लौट पडूंगा, मैं ।★★★
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धुंध(fiction) ©️
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