11. खिजाब (Short-story)

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खिजाब की दीवानगी माशाअल्लाह उमर की मोहताज नहीं । क्या जवान क्या बूढ़े; गोया अभी परसों की बात है ,एक जनाब खिजाब का सुरूर चढ़ाये अलमस्त चले जा रहे थे, तभू किसी ने ताना दे मारा- "एक पॉंव कब्र में लटक रहा है और मियाँ चक्कू में धार चढ़ा रहे हैं ।"बस फिर क...

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खिजाब की दीवानगी माशाअल्लाह उमर की मोहताज नहीं । क्या जवान क्या बूढ़े; गोया अभी परसों की बात है ,एक जनाब खिजाब का सुरूर चढ़ाये अलमस्त चले जा रहे थे, तभू किसी ने ताना दे मारा- "एक पॉंव कब्र में लटक रहा है और मियाँ चक्कू में धार चढ़ा रहे हैं ।"बस फिर क्या था , मियाँ ने आव देखा न ताव उसके गाल पर अपनी जवानी की मोहर लगा दी । उस दिन के बाद से गली के लौंडे मियाँ से नहीं उलझते ।ये खिजाब का सुरूर नहीं तो क्या है ?

खिजाब शब्द सुनने में बड़ा प्यारा लगता है ,वहीं इसका ठेठ देसी संस्करण देखें तो इसे कालिख़ कहते हैं ।सुनते ही जिगर दहल उठता है,गोया कोई कांड हो गया हो । एक ही चीज को दो अलग नामों से पुकारो तो सोच का नज़रिया बदल जाता है ।

लोग ख़ुद पर खिजाब चढ़वाते हैं वहीं लोग दूसरों पर कालिख चढ़ाते हैं, कोई खुद पर कालिख चढ़ाना नहीं चाहता । सुनने में हास्यास्पद है कि चीज वही है लेकिन असर दोमुंहा । दिल को दिलासा देने के लिये कलंक शब्द ठीक है । इसका अर्थ व्यापक है सारगर्भित नहीं ।

यदि किसी से पूछें कि सिर पर कालिख़ पोतकर कहाँ चले तो तुरंत मुंडन करा के आ जायेगा और उफ्फ तक नहीं करेगा । तत्पश्चात बाजबहादुर ऐसे तमीज से चलेंगे मानो दूध के धुले हों ।

यदि किसी से कह दें कि सिर पर कलंक लिए कहाँ फिर रहे हो तो वो विचारक में तब्दील हो जायेगा । जड़मूर्ति अतीत के सारे पन्नें उधेड़ डालेंगे ये मालूमात पुख़्ता करने के लिए कि ये संजीदगी से दिया बयान है या फिर ठिठोली, उस समय वे वकील का रूप धारण करेंगे और निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद ही कदम आगे बढ़ाएंगे ।

वहीं अगर ये बात कुछ यूँ पूछी जाए कि खिजाब लगाये कहां चले ? तो बंदा ऐसे शरमाता है जैसे नई नवेली दुल्हन लजाती है ।फिर मियाँ देवदास गीत गुनगुनाते हुए आगे बढ़ जाएंगे ।

अव्वल, ये तो था असल; अब सूद पर आते हैं ।

कुछ रंग बड़े पक्के होते हैं, चाहकर भी नहीं उतरते ।प्यार का रंग एक मिसाल है ,लेकिन इस तराजू में तीन पड़ले हैं, इसमें मिजान नहीं । बात महज़ सोच की है ।
पीढियां खप जाती है एक सोच से लड़नें में,
ये तो शुद्ध कलंक है ।

इतिहास के कुछ होलोकॉस्ट सफ़ेदी पर कालिख पोत चुके । एक फोड़ा जो नासूर बन जाता है, जिंदगी लील लेता है । ये भी एक रंग है हुकूमत का । अलबत्ता रुह की सफ़ेदी बरक़रार रहनी चाहिये, फिर चाहे रंग चढ़ाओ या न चढ़ाओ ।
यहाँ रंग फबेगा ।
लेकिन आप खिजाब ही लगाना,
मैं भी लगाता हूँ ।
शायद, आपका दिमाग गर्म हो चुका है ।

वैसे, मेहँदी की तासीर ठंडी होती है ।

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