17. मजदूर (कविता)

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कड़ी धूप में, नंगे पाँवतपते रेगिस्तान मेंमेरे जैसे जाने कितनेहैं इस हिंदुस्तान में

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कड़ी धूप में, नंगे पाँव
तपते रेगिस्तान में
मेरे जैसे जाने कितने
हैं इस हिंदुस्तान में

मैं हूँ उपासक
खेतों का, मेढ़ों का
मैं तपस्वी-
मैं वही उपवासी ।

मैं खानाबदोश हूँ
मैं ही बहता पानी
मैं सरफ़रोश-
मैं वही देशप्रेमी ।

मेरा बदबूदार पसीना
बहता है- इत्र सा
अरब के बाज़ारो में

मेरा मूक अस्तित्व
जड़ा है-हीरे सा
कोयले की खदानों में

शहरों का दंभ हूँ मैं
पीसा की मीनार हूँ ।
मैं मजदूर हूँ-
मैं अरब की दीनार हूँ ।

मीलों की दूरियां नापी है
मैंने बापू के संग
मैं वही मजदूर हूँ-
जो थकान से नहीं डरा

मैं वही शिल्पी,
मैंने रचा, कोणार्क को

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