32 * परिचय

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🛑 परिचय

मैं शून्य, मैं ही आधार हूँ
मैं मौन, मैं वाचाल हूँ ।
कुछ मुझे देव कहते, कहीं असुर समान हूँ मैं
विस्मित इंसान हूँ मैं ।

मैं वही शिल्पी
जिसने रचा कोणार्क
सूरज का तेज, वास्तु का ईशान मैं हूँ
छाँया से परेशान हूँ , मैं -

मेरे बहुत से नाम हैं, मेरे असंख्य धर्म
मानचित्र की नदी, देश की पहचान हूँ मैं
क्षण-क्षण बदलता समय
रंगों की दुकान हूँ, मैं-

मैं भूखा, मैं गरीब
रोटी खोजता इंसान हूँ-
कुछ मुझे सांत्वना देते, कुछ हैं समझते चोर
जिंदगी काटता इंसान हूँ, मैं-

ये कैसा विस्मय ?
कि लोग मेरा परिचय देते , किसी धर्म से
ना मंदिर-मस्जिद , ना गीता-कुरान हूँ मैं
सिर्फ एक इंसान हूँ - मैं ।

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