'सत्य'

68 16 37
                                    

Hope you will like it.

जीवन के सब भोगविलास।
मुख वाचन से सब अनायास ।।

धूमिल जनों का चरित्र-चित्रण ।
विश्वास बना अब अविश्वास ।।

झूठे वादों का परचम लेकर ।
स्वार्थ सिद्ध करते कलाकार ।।

तर्क वितर्क से परे है "सोज"
अभिवृत्तियो का सत्यानाश

अत्याचार बनी घोर मुसीबत ।
गलत विसंगति का पश्चाताप ।।

मूल्यांकन से अभिप्रेरित होकर।
सामूहिक दायित्व का अधिकार

                                            ✍प्रियंक खरे 'सोज़'

साहित्य सरस जहाँ कहानियाँ रहती हैं। अभी खोजें