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जीवन के सब भोगविलास।
मुख वाचन से सब अनायास ।।धूमिल जनों का चरित्र-चित्रण ।
विश्वास बना अब अविश्वास ।।झूठे वादों का परचम लेकर ।
स्वार्थ सिद्ध करते कलाकार ।।तर्क वितर्क से परे है "सोज"
अभिवृत्तियो का सत्यानाशअत्याचार बनी घोर मुसीबत ।
गलत विसंगति का पश्चाताप ।।मूल्यांकन से अभिप्रेरित होकर।
सामूहिक दायित्व का अधिकार✍प्रियंक खरे 'सोज़'