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दूर तक जो नज़र मेरी
भटक रही इस कदर
देख के अंजाना कर गयी
कुछ दूर थी मगर
चेहरा छुपा हुआ था जरा
घूंघटो की आड़ पर
झांकती जो निगाहे मेरी
चेहरा छुपा लेती उधर
देर हो चुकी थी मुझे अब
इंतज़ार हुआ बेसबब
लौट आऊंगा यदि फिर
जब चेहरा घुमा लोगी इधर
मुस्कुराते जो अल्फ़ाज़ तेरे
कह दो भी कुछ अभी
नज़्म जो मेरे निकले
तो बिखर जाओगी अभी।।✍ प्रियंक खरे 'सोज़'
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