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चिता जली तो राख हुए,
और चिंता से ढले शरीर।
तन की काया ढेर हुई,
जगत का यह खेल अजीब।माया मोह सब रह गयी,
लगा न कुछ भी हाथ।
स्वर्ग सिधारे जन यहाँ,
ना मिला किसी का साथ।जो आता इस जीवन में,
होता उसका अनुबंध।
कोई किसी का कुछ नहीं,
ये जीवन है लघु संबंध।आना जाना लगा रहेगा,
जीवन का यह खेल।
बिछड़े सब फिर मिलेंगे,
स्वर्ग में होगा मेल।कुछ नहीं रखा इस जीवन में,
भाग-दौड़ के पल।
आज का हार गया मानव,
ना आज जाने ना कल।✍ प्रियंक खरे 'सोज़'