शीर्षक - तेरा लिबास मेरे "इत्र" का

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बिकता है इत्र बाजार में खरीदने के लिए
वो पास आकर बैठी हैं महकने के लिए

इत्र लगा है लिबास में थोड़ी देर के लिए
उड़ जायेगा इत्र बिना इंतजार किए हुए

इत्र से कई मित्र बने दिल चुराने के लिए
इत्र चंदन का था मित्र को फसाने के लिए

शीशी भरी इत्र की हल्की से चिटक गई
बूंद बूंद इत्र बहा वो तो रास्ता भटक गई

एक इत्र से जो सारा शहर महक गया
वो जो एक रात, मेरे शहर में ठहर गया

इत्र से भरा गुलाब तुम एक खास रखना
याद जब आऊं मेरा गुलाब पास रखना

प्रियंक खरे "सोज" ✍️
स्वरचित सृजन

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⏰ पिछला अद्यतन: Sep 05, 2023 ⏰

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