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देखते देखते वो क्या से क्या हो गए।
जमाने का कसूर या खुद जवां हो गए।।हालात -ए-हवाले कर दिया उनको मैने।
खबर -ए-चर्चे उनके सरेआम हो गए।।हर शक्स से वाकिफ न था मैं जरा भी।
बरसो की पहचान को अंजान कर गए।।रोक न पाया इन छलकते आंसुओं को।
भीगी पलको के वो ग़ज़ल बन गए।।✍प्रियंक खरे 'सोज़'
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