रंगा रंग जमाना है।
जमाने मे हर कोई बेगाना है।मत चल सीधी राहों पर।
राहो पर ही तो फसाना है।अपने जो भी मिले यहाँ।
न कुछ जाना न पहचाना है।भटक रहा हर मुसाफिर यहाँ।
जीवन का क्या ठिकाना है।मत कर कुछ परवाह यहाँ।
सब कुछ माया मोह बहाना है।आया था तो जाएगा भी।
अब लगता सब वीराना है।
- प्रियंक खरे 'सोज़'