'बेगाना शहर'

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रंगा रंग जमाना है।
जमाने मे हर कोई बेगाना है।

मत चल सीधी राहों पर।
राहो पर ही तो फसाना है।

अपने जो भी मिले यहाँ।
न कुछ जाना न पहचाना है।

भटक रहा हर मुसाफिर यहाँ।
जीवन का क्या ठिकाना है।

मत कर कुछ परवाह यहाँ।
सब कुछ माया मोह बहाना है।

आया था तो जाएगा भी।
अब लगता सब वीराना है।
   
                                    - प्रियंक खरे 'सोज़'

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