भाग ४७

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मंजू और गीता

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डबल धमाका

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वो तड़प रहे थे सिसक रहे थे।

गीता ने अचानक अपने होंठों के बीच उनके पेल्हड़ की एक गोली ( बॉल्स ) दबा ली और लगी चुभलाने ,

और उसके बाद दोनों बॉल्स ,

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ये नहीं की उनका लन्ड आजाद हो गया था , गीता की शरारते कम नहीं थी ,

एक हाथ से कभी वो अपनी लम्बी चोटी उसपे रगड़ती ,सहलाती तो कभी कस के बाँध के रगड़ती ,

लन्ड की रगड़ाई और बॉल्स की चुसाई दोनों साथ साथ चल रहे थे।

साथ में बीच बीच में गीता के कमेंट्स कभी मंजू बाई से ,कभी उनसे

" क्यों माँ मजा आ रहा है न मेरे भैया से ,अपने खसम से भोंसड़ा चुसवा के, अरे माँ मैंने बोला था न ये तेरा यार बचपन का मादरचोद है ,

माँ के भोसड़े का रसिया।

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बोल न बहन का चूसने में ज्यादा मजा आ रहा था ,या माँ का चूसने में। "

लेकिन मंजू बाई भी चुप रहने वाली नहीं थी , मुंह तो उसका भी खुला था ,जवाब में बोली ,

" अरे भाई की रखैल तेरी क्यों सुलगती है , मेरी बेटी का भाई मेरा भी तो कुछ लगेगा , मेरा भी तो हक़ बनता है न उससे मजा लेने का।

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तू भी तो उसका लन्ड चाट रही है ,टट्टे चाट रही तो मेरी भी मर्जी मैं चाहे उससे बुर चटवाऊं ,चाहे गांड ,चाहे गांड के अंदर का , .. "

और उसी के साथ मंजू बाई के धक्के बढ़ गए , और वो भी,

एक नए तरह का नशा , भोंसड़ा उनके मुंह से एकदम चिपका रगड़ खाता,

एक अजब महक ,एक तेज भभका उनकी नाक में भर रहा था ,भोंसडे की महक ही उन्हें पागल कर रही थी।

उनके कान में उनके सास की बात गूँज रही थी ,

" बस एक बार चाट ले अपनी माँ का भोंसड़ा , मेरी गारंटी। वो मजा आएगा , वो स्वाद मिलेगा न तू खुद ही उसके पेटीकोट खोलने के लिए पीछे पीछे घूमेगा। "

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