भाग ६१

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मॉम का आखिरी दिन

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मॉम का आखिरी दिन था और वो कुछ भी कर रहे थे , बस मॉम किसी तरह खुश रहें।

और मॉम भी एकदम उन्हें चिपकाये, एक मिनट के लिए भी एक दूसरे को दोनों छोड़ नहीं रहे थे।

और साथ में मम्मी की ट्रेनिंग भी ,

उन्हें सिखाना पढ़ाना ,उनकी आदते सुधारना जारी था।

मम्मी का सारा सामान भी उन्होंने ही पैक किया अपने हाथ से।

मम्मी ने यहां तक की उस समय की अपनी पहनी ब्रा और पैंटी भी उन्हें उतार के दे दी ,

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वो उसे चूम के अपनी वार्डरोब में रखने लगे तो ,

डाँट और चपत एक साथ पड़ गयी उन्हें ,

अरे बुद्धू तुझे पहनने के लिए दिया है , चल पहन अभी।

अरे तुझ तुझे इससे लगेगा न की मैं तेरे पास हूँ।

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किचेन में भी मम्मी उनके साथ ,शाम का खाना उन्ही दोनों के जिम्मे था।

मम्मी उन्हें धीमी आंच पर मसाला भूनना सिखा रही थी ,

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और साथ में मम्मी का एक हाथ उनके गुदाज गोरे चिकने पिछवाड़े को सहला रहा था , और एक अँगली का अंदर घुसा हुआ था , मम्मी कभी उनके इयर लोब्स को हलके से बाइट कर लेतीं ,कभी अपने भारी जोबन उनके पीठ पर रगड़ देतीं ,

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और हलके हलके उनके कान में बोल रही थीं ,

मैं किचेन में किसी काम से गयी , और उन लोगों की फुसफुसाती आवाज,

" अरे तू फालतू में घबड़ाता है ,बेकार में झिझकता है। सिर्फ गांड मराने से कोई गे थोड़े ही हो जाता है।

फिर स्साले तुझे कुछ करना थोड़ी है , बस घोड़ी बन के निहुर जाना, कित्ती बार तो मेरे और मंजू के सामने, बस,.... फिर तो वो करेगा जो, और दर्द होगा तो होगा , बर्दास्त कर लेना, नहीं तो चीख चिल्ला लेना रो धो लेना, मैं छोड़ती थी तुझे क्या तेरे चीखने पर, ...मेरे आने के पहले ये फट जानी चाहिए, वरना सोच ले , ...मैं नहीं आउंगी,... मुझे बुलाना चाहते हो न ,... "

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