भाग ९

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अँधेरे बंद कमरे -मन के

हाँ तो मैं कह रही थी ,असल में बात कुछ ख़ास नहीं बहुत लोग करते हैं। न सुनाना बेईमानी होगी।

फिर भी समझ में नहीं आ रहा है कैसे शुरू करूँ।

बात ये है की मैं एक सीढ़ी ढूंढ रही थी , ऊपर चढ़ने वाली नहीं नीचे उतरने वाली।

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हम लोगो की गाडी पटरी पर आ गयी थी , लेकिन आलमोस्ट।

मुझे लगता था की जैसे मैंने किसी तिलस्म को तोड़ तो दिया है ,

जिसमें इनके मायकेवालियों ने इन्हे बंद कर रखा था ,

लेकिन तब भी ऐसे कई कमरे हैं जिसकी चाभी मेरे पास नहीं है।

बात करते करते वो अक्सर 'आफ ' हो जाते थे , कई बार मुझे लगता था की वो मेरे पास हैं लेकिन ,मेरे पास नहीं है।

चारो ओर जैसे रौशनी की दरिया बह रही हो ,

लेकिन बीच में अँधेरे के बड़े बड़े द्वीप होंऔर वो वहां ये ग़ुम हो जाते हों।

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अब हम दोनों एक दुसरे से बहुत खुल गए थे फिर भी ,

और उनमे एक चीज थी उनकी लैपी

वो कई बार उसमें उलझे रहते थे। लेकिन जो चीज जिसने मुझे स्ट्राइक की वो थी , ओ के , हिस्ट्री।

मैंने एक दो बार उनसे उनका लैपी माँगा , तो कुछ देर से दिया उन्होंने।

मुझे लगता था की आफिस का कोई काम कर रहे होंगे।

लेकिन एक बार मैंने थोड़ी देर कुछ साइट्स देखने के बाद गलती से बंद कर दिया ,और फिर खोला , जब मुझे याद नहीं आया तो हिस्ट्री खोली , कुछ देर बाद मैंने रिएक्ट किया।

मुझसे पहले की सारी हिस्ट्री साफ ,

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अब गलती मेरी ही थी , सिम्पल क्यूरियॉसिटी।

फिर तो हर बार जब मैं इन से इन का लैपी मांगती , तो मारे क्यूरियॉसिटी के पहले हिस्ट्री चेक करती

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