भाग ७९

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मौसम आशिकाना

बाहर मौसम भी आशिकाना हो रहा था।

बादल उमड़ घुमड़ रहे थे , बीच बीच में बिजली चमक रही थी ,

रात में तेज बारिश के पूरे आसार थे ,और मैं इनका इशारा और इरादा दोनों समझ गयी थी।

मैं भी ऊपर अपने कमरे में चलने के लिए उठी लेकिन , ....

सैंडल पहनते समय मेरा पैर थोड़ा मुड़ गया।

तेज दर्द उठा ,रोकते रोकते भी मेरे मुंह से चीख निकल गयी।

एकदम कन्सर्न्ड होके वो घुटनों के बल जमीन पर बैठ गए और मेरा पैर अपनी गोद में लिया , और सहलाने लगे।

मोच तो नहीं आयी थी पर , ... दर्द हो रहा था।

सम्हाल के उन्होंने सैंडल उतार दी , पर मैं कनखियों से अपनी जेठानी जी को देख रही थी।

दर्द के बावजूद मैं अपनी मुस्कान नहीं दबा पायी।

मेरी जेठानी चेहरे का एक्सप्रेशन , एनवी ,ऐंगर, कुढ़न , ...सब कुछ पल भर में एक साथ उनके चेहरे पर।

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और मैं एक बार फार यादों की सीढी पर चढ़ के वापस फ्लैश बैक में ,...

एक बार उठते समय अनजाने में मेरे पाँव इनके टखनों से छू गए , और यही मेरी जेठानी ,

इत्ती जोर की मुझे डांट पड़ी , घुडक के बोलीं ,

" क्या करती हो , अरे सपने में भी पति को पैर से नहीं छूना चाहिए , सीधे नरक में जाती है औरत जो गलती से भी अपने पति को पैर से ,... "

नरक का तो पता नहीं लेकिन इस समय जिस तरह से वो मेरे पैर छू रहे थे ,सहला रहे थे , आई वाज जस्ट फ़ीलिंग हैवनली।

और मेरी जेठानी कुलबुला रही थीं , अनईजी महसूस कर रही थीं।

कर रही थीं तो करे, मेरे पैर शान से इनके गोद में , ...

मेरा पति मैं चाहे जो कुछ करूँ उसके साथ।

उनकी उंगलिया ,हल्के हलके मेरे तलुवे सहला रही थीं।

अंगूठे से धीरे धीरे जहां दर्द हो रहा था उसे वो दबा रहे थे और चेहरा उनका मेरे चेहरे की ओर ,

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