शक्तिमेख

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हिमा ने अचंभा में महाराज सोम से पूछा,"महाराज?? आपने ये कैसे...???"
"आपको क्या लगा छोटी रानी जी ? कलाज्ञान की कला केवल आपको ही आती है??" महाराज सोम ने प्रोत्साहन में मुस्कुराते हुए धीरे से हिमा को कहा। हिमा तो उन्हें देख कर पूरी तरह अचंभित हो गई थी।

जो चट्टान उस खलनायिका के विवार (portal) से निकला था, वह महाराज सोम के बनाए हुए विशाल विवार ने अंदर चला गया और अदृश्य हो गया। और फिर महाराज ने उस विवार को बंद कर दिया। सभा में आए हुए सभी लोग अचंभित रह गए। यह खलनायिका इतने शुभ अवसर पर अकस्मात कहा से आ गई। और यह महारथी महाराज सोम के पास यह कैसी शक्ति है ?

वह खलनायिका महाराज सोम के बनाए विवार को देख कर अत्यंत क्रोधित हो गई। जोर जोर से कहने लगी,"इसका क्या अर्थ है??? तुम्हारा विवार शक्तिमेख हमारे पास है!!! तो तुम कैसे??!!" वह खलनायिका बहुत ही क्रोधित लग रही थी।

दूसरी ओर यहां महल के बाहर सब भयपूर्वक खड़े थे। हिमा भी उलझन में सोची जा रही थी कि क्या किया जाए। भले ही वह रूपांतर की कला जानती है परंतु उस कला से वह राज्य की रक्षा कैसे कर सकेगी?? वो भी इस प्रकार की खलनायिका से।

उस बुरी स्त्री ने फिर स्वयं को शांत किया। फिर मुस्कुराई और कहने लगी," कोई बात नहीं। देखते हैं तुम कितनी देर तक अपने इस महल और राज्य की रक्षा कर पाते हो !!" ऐसा कहकर उसने फिर से अपने दोनो हाथों से विवार का निर्माण कर दिया , और इस बार उसने एक नहीं , अनेक विवारों का निर्माण किया, कम से कम ५०? कदाचित अब उन सभी विवारों से विशाल चट्टानें गिरने वाली हैं!!!

कुछ विवार राज्य को चारों ओर थे , और कुछ विवार पूरे राज्य के ऊपर आकाश में बने थे, वह भी इतने विशाल , लग रहा था जैसे यदि इन विवरों में से भूल से भी कोई चट्टान आया , तो अनर्थ हो कर ही रहेगा।

वह खलनायिका गुरुत्व आकर्षण को पराजित कर , ऊपर आकाश में उड़ गई , और वहां से चिल्ला के सबको ललकारने लगी,"३०० वर्ष पूर्व तो इस विश्व को तुमने बचा लिया था, परंतु अब ?? अब इस विश्व को हमसे, छायांतर से कोई भी नहीं बचा सकता!!!" जोर जोर से हस कर वहां से अदृश्य हो गई।

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